” टैगोर “
“” टैगोर “”
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कवि
हृदय थे टैगोरजी हमारे,
बन प्रकृतिस्थ , जीया जीवन यहाँ पर !
देखा इन्होंने अपने आस-पास जो भी..,
उनके चित्र बना, रचते गए गीत सुंदर !! 1 !!
छवि
बसी है रविंद्रनाथ टैगोरजी की,
हरेक भारतीय जन-मन के हृदय में !
नित चलें इनके गीतों को गाते यहाँ पे..,
और इनकी मधुर स्मृतियों को याद करते !! 2 !!
रवि
किरणों सी थी इनमें गर्माहट,
चले भरते युवाओं में ऊर्जावान स्वर !
और हर भोर की प्रथम किरणों के संग-संग,
टैगोरजी करते थे शुरूआत साहित्यिक सफ़र की !! 3!!
हवि
करते चले सदैव टैगोरजी ,
और देशसेवा में देते रहे अपनी आहूति !
लगाए चले देशभक्ति की यहाँ पर टेर….,
रचके जन-गण-मन गीत करी जन जाग्रति! 4!!
अवि
टैगोर थे भारत के राष्ट्रकवि ,
गए रच प्रसिद्ध गीत ‘ गीतांजलि ‘, काव्य !
हुए पूरे विश्व में प्रसिद्ध रविंद्रनाथजी …,
होकर पुरस्कृत नोबेल से, बसे सबके हिय!! 5!!
* हवि : हवन / यज्ञ
* अवि : सम्राट
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सुनीलानंद
शुक्रवार,
10 मई, 2024
जयपुर,
राजस्थान |