Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Apr 2023 · 5 min read

*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ: दैनिक समीक्षा* दिनांक 5 अप्रैल

संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ: दैनिक समीक्षा दिनांक 5 अप्रैल 2023 बुधवार
प्रातः 10:00 से 11:00 तक । आज पहला दिन था। आयोजन में डॉक्टर हर्षिता पूठिया का विशेष सहयोग रहा।
बालकांड प्रारंभ से दोहा संख्या 14 तक
तुलसीदास जी के हृदयोद्गार
बालकांड के आरंभ में लिखित सात श्लोकों का सर्वप्रथम रवि प्रकाश ने पाठ किया तथा बताया कि इन श्लोकों के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास ने विभिन्न देवी-देवताओं की वंदना की है ।
प्रथम श्लोक में गणेश जी और सरस्वती जी की वंदना है। दूसरे श्लोक में शंकर और पार्वती जी की वंदना है । तीसरे श्लोक में शंकर जी के गुरु-रूप की वंदना है। चौथे श्लोक में कविवर वाल्मीकि तथा हनुमान जी की वंदना की गई है । पॉंचवे श्लोक में सीता जी को तुलसीदास का प्रणाम समर्पित है । छठे श्लोक में राम को वास्तव में भगवान श्री हरि के रूप में दर्शन करते हुए तुलसीदास जी ने उनकी वंदना की है । यह श्लोक इस बात का परिचायक है कि तुलसी के राम केवल एक साधारण हाड़-मांस के मनुष्य नहीं है । वह धरती पर भगवान के साक्षात अवतार हैं। सातवॉं श्लोक इस बात को प्रदर्शित कर रहा है कि गोस्वामी तुलसीदास ने राम कथा जो कही है, उसका प्रयोजन अथवा उद्देश्य क्या है ? वह कहते हैं :
स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा अर्थात तुलसीदास जी राम की कथा केवल स्वांत: सुखाय ही कह रहे हैं । अंतःकरण का आनंद उनका एकमात्र ध्येय है । ऐसे में कवि स्वयं ही वक्ता तथा स्वयं ही श्रोता बन जाता है । वह अपने मुख से रामकथा गाता है और अपने अंतःकरण में विराजमान परमात्मा को वह राम कथा सुनाता है । आकाश में उपस्थित देवगण उस रामकथा को सुनते हैं और प्रसन्न होकर असीम आनंद की वृष्टि करते हैं । संसार में अनेक लेखकों और कवियों ने कभी धन के लिए लिखा है, कभी पद के लिए लिखा है, कभी प्रशंसा के लिए लिखा है । लेकिन सर्वोत्तम लेखन वही है जो अंतःकरण की तृप्ति के लिए लिखा जाता है । इसमें लेखक को लिखने की प्रक्रिया में ही अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त हो जाता है तथा यह प्रश्न शेष नहीं रहता कि लिखने के बाद लेखक को क्या मिलेगा ? तुलसी की रामकथा एक ऐसा ही आनंद से भरा हुआ काव्य है, जिसको सुनने और सुनाने की प्रक्रिया में ही सब कुछ मिल जाता है ।
तदुपरांत रामचरितमानस के बालकांड का विधिवत हिंदी-भाषा में पाठ आरंभ हुआ। आज कुल चौदह दोहों तक पाठ हो सका । इन सभी में बालकांड की विधिवत कथा से पूर्व नीति से संबंधित उपदेश तुलसीदास जी ने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किए हैं। इसमें गुरु की सर्वोच्च महत्ता को स्थापित किया गया है । वह प्रथम दोहा वर्ग से पूर्व लिखते हैं :
बंदउ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा
इस प्रकार गुरु के चरणों को कमल के अनुसार मानते हुए उनकी वंदना की गई है ।
एक अन्य चौपाई है:
श्री गुरु पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिव्य दृष्टि हियॅं होती।।
इसमें तुलसीदास जी गुरु के चरणों की तुलना मणियों के प्रकाश से करते हैं।
सत्संग की महिमा से बालकांड का नीति विषयक अंश भरा पड़ा है ।
बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
इस चौपाई के माध्यम से तुलसीदास जी ने सत्संग को इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया है कि उनके अनुसार व्यक्ति के अंतर्मन में विवेक का जागरण बिना सत्संग के हो ही नहीं सकता तथा यह सत्संग भी बिना भगवान राम की कृपा के सुलभ नहीं होता। इस प्रकार जब जीवन में विवेक का जागरण परमात्मा कराना चाहता है, तब वह कृपा करके सत्संग की ओर उस व्यक्ति को ले जाता है । जीवन में सत्संग से बढ़कर अच्छा फल देने वाला कोई कार्य नहीं है।
तीसरे दोहे के अंतर्गत संतो के स्वभाव की चर्चा की गई है। तुलसीदास जी ने लिखा है:-
बंदउॅं संत समान चित, हित अनहित नहिं कोइ
अर्थात संतों की वंदना करता हूॅं, जिनके हृदय में सबके लिए समान भाव है । न कोई मित्र है, न कोई शत्रु है ।
आश्चर्यजनक रूप से तुलसीदास जी दुष्टों को भी प्रणाम करने से नहीं चूकते । वह लिखते हैं कि दुष्टों का स्वभाव ही ऐसा होता है कि जो उनका हित करता है, वह उसका भी अहित ही करते हैं । वे सदैव कठोर वचनों में विश्वास करते हैं तथा सदैव दूसरों के दोषों को ही निहारते हैं।रामचरितमानस के शब्दों में:
बचन बज्र जेहि सदा पियारा। सहस नयन पर दोष निहारा।।
रामचरितमानस में समस्त प्राणियों को विनम्रता पूर्वक प्रणाम करने तथा सब प्राणियों में एक ही ईश्वर के दर्शन करने वाला जो अद्वितीय भाव है, वह अन्यत्र दुर्लभ है । तुलसीदास जी इस बात को बिल्कुल स्पष्ट रूप से कहते हैं कि इस संसार में चौरासी लाख योनियों में जितने भी प्राणी चाहे वह जल, थल अथवा नभ कहीं भी हों, उन सब में हम राम और सीता के दर्शन करते हैं तथा उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं :-
आकर चारि लाख चौरासी, जाति जीव जल थल नभ वासी।
सियाराम मय सब जग जानी, करउॅं प्रनाम जोरि जुग पानी। (दोहा संख्या 7)
एक कवि होने के नाते तुलसीदास जी ने कवियों की मनोवृति के संबंध में बहुत सुंदर व्याख्या बालकांड में कर दी है। उनका कहना है कि अपनी-अपनी कविता तो सभी को अच्छी लगती है । भले ही वह सरस हो अथवा फीकी, लेकिन अद्वितीय स्थिति तो तभी उत्पन्न होती है जब दूसरों की कविता सुनकर व्यक्ति हर्षित हो जाए। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति में प्रशंसा करने का गुण अगर आ जाए तो वह उत्तम कोटि में प्रवेश कर जाता है:-
निज कवित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका ।।
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।।
एक कवि के रूप में यह तुलसीदास जी की निरभिमानता ही है कि उन्होंने अत्यंत लयात्मकता से ओतप्रोत रामचरितमानस लिखने के बाद भी यही कहा कि मुझे काव्य का ज्ञान नहीं है :-
कबित विवेक एक नहिं मोरे।
सत्य कहउॅं लिखि कागज कोरे (दोहा 8)
दशरथ के पुत्र राम के रूप में जिन्होंने मनुष्य शरीर धारण किया है, वह साक्षात परमात्मा ही हैं। तुलसीदास जी ने इसीलिए दोहा संख्या 12 के अंतर्गत एक ओर तो ईश्वर के स्वरूप का वर्णन किया है, जिसमें बताया गया है कि ईश्वर एक है, इच्छा से रहित है, उसका कोई रूप और नाम भी नहीं होता, वह अजन्मा है, सच्चिदानंद है, परमधाम है, सर्वव्यापक है अर्थात सृष्टि के कण-कण में समाया हुआ है, विश्वरूप है, लेकिन अजन्मा होते हुए भी उसी परमात्मा ने मनुष्य रूप धारण करके इस धरती पर राम का नाम स्वीकार करते हुए अनेक प्रकार की लीलाऍं की हैं। एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा ।।
व्यापक विश्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना।।
दोहा संख्या 12 वर्ग में ईश्वर के संबंध में यह भी कह दिया गया है कि उसका चाहे कितना भी गुणगान कर दिया जाए लेकिन वह पूर्ण नहीं हो पाएगा । अतः इस संबंध में नेति नेति अर्थात अंत नहीं है -कहना ही उचित रहता है । इसलिए दोहा संख्या 12 में तुलसीदास जी लिखते हैं :-
सारद सेस महेश विधि, आगम निगम पुरान।
नेति नेति कहि जासु गुन, करहिं निरंतर गान।।
———————————————————
प्रस्तुति : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

371 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
जनता का भरोसा
जनता का भरोसा
Shekhar Chandra Mitra
पूरी निष्ठा से सदा,
पूरी निष्ठा से सदा,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Shyam Sundar Subramanian
मां
मां
Slok maurya "umang"
*
*"शिव आराधना"*
Shashi kala vyas
असफलता
असफलता
Neeraj Agarwal
मां नर्मदा प्रकटोत्सव
मां नर्मदा प्रकटोत्सव
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
संवेदना
संवेदना
Shama Parveen
जीवन जोशी कुमायूंनी साहित्य के अमर अमिट हस्ताक्षर
जीवन जोशी कुमायूंनी साहित्य के अमर अमिट हस्ताक्षर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*सुनिए बारिश का मधुर, बिखर रहा संगीत (कुंडलिया)*
*सुनिए बारिश का मधुर, बिखर रहा संगीत (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
इंद्रवती
इंद्रवती
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
दाम रिश्तों के
दाम रिश्तों के
Dr fauzia Naseem shad
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस
Indu Singh
*अयोध्या*
*अयोध्या*
Dr. Priya Gupta
बड़ी मादक होती है ब्रज की होली
बड़ी मादक होती है ब्रज की होली
कवि रमेशराज
#संबंधों_की_उधड़ी_परतें, #उरतल_से_धिक्कार_रहीं !!
#संबंधों_की_उधड़ी_परतें, #उरतल_से_धिक्कार_रहीं !!
संजीव शुक्ल 'सचिन'
"अहसास मरता नहीं"
Dr. Kishan tandon kranti
अंधेरे आते हैं. . . .
अंधेरे आते हैं. . . .
sushil sarna
एक मैं हूँ, जो प्रेम-वियोग में टूट चुका हूँ 💔
एक मैं हूँ, जो प्रेम-वियोग में टूट चुका हूँ 💔
The_dk_poetry
अपने आंसुओं से इन रास्ते को सींचा था,
अपने आंसुओं से इन रास्ते को सींचा था,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
फूल
फूल
Pt. Brajesh Kumar Nayak
प्रेम पाना,नियति है..
प्रेम पाना,नियति है..
पूर्वार्थ
जो समझ में आ सके ना, वो फसाना ए जहाँ हूँ
जो समझ में आ सके ना, वो फसाना ए जहाँ हूँ
Shweta Soni
आ भी जाओ
आ भी जाओ
Surinder blackpen
तू मुझको संभालेगी क्या जिंदगी
तू मुझको संभालेगी क्या जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
ज़िंदगी जीने के लिये क्या चाहिए.!
ज़िंदगी जीने के लिये क्या चाहिए.!
शेखर सिंह
श्रीराम किसको चाहिए..?
श्रीराम किसको चाहिए..?
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
2573.पूर्णिका
2573.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
■ तजुर्बे की बात।
■ तजुर्बे की बात।
*प्रणय प्रभात*
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Loading...