” टेलीफोनिक संवादों से मित्रों की बेरुखी “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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अपने सगे सम्बन्धियों से तो हम जम के अपने मोबाइल फ़ोन और लैंड लाइन में बातें करते हैं पर अन्य लोग प्रचुर सुविधा के बाबजूद भी समय नहीं निकाल पाते हैं ! हमें स्वाभिमान है कि हमने फेसबुक ,व्हात्साप ,मेसेज ,स्क्यप्स इत्यादि पर विजय पताखा फहरा दिया ! इन्हीं के प्रदर्शनों से हम अपने मित्रों के बीच कुशल योध्या बने रहेंगे ! आखिर हम ही फ़ोन क्यों करें ? उन्हें भी तो करना चाहिए ! संयोगवश किसीने हिमाकत की भी तो दूसरी ओर से आवाज आती है ‘सब ठीक है ,तुम कैसे हो ?..अभी मैं व्यस्त हूँ ,बाद में बात करते हैं ‘! फिर इंतजार की घड़ियाँ गुजरने लगती है और हम सोचने को वाध्य हो जाते हैं कि हमने फोन किया ही क्यों ?… कभी -कभी ह्रदय में यह बात भी उभरने लगती है कि हम श्रेष्ठ हैं फ़ोन करना तो कनिष्ठों का काम है ! हम अपनी मर्यादा कैसे भूल जाएँ ? …..
हमें याद है ९ बजे रात के बाद एस .टी .डी. बूथ का मंजर ! लम्बी -लम्बी लाइनों में खड़े रहते थे ! कितने प्रतीक्षाओं के बाद टेलीफ़ोन हो पाता था ! गांवों में जिसके पास फ़ोन होते थे उन्हें पूज्य माना जाता था ! नहीं तो इतने रात गए आपको बुलाएगा कौन ? ….आज हमें टेलीफोन की उत्कृष्ट सेवाओं ने हमारे जीवन को आसान बना रखा है फिर यह बेरुखी कैसी ?
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका