टेढ़ी ऊंगली
टेढ़ी ऊंगली
उनकी गिनती राज्य के तेज़तर्रार युवा आई.ए.एस. अफसरों में होती थी। कुछ साल पहले की ही बात है। उनकी पोस्टिंग राजधानी के किसी ऑफिस में मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर थी। किसी बात पर उनकी अपने विभागीय मंत्री से ठन गई। मंत्री जी ने उन्हें देख लेने की धमकी दी थी।
इस टकराव का परिणाम भी जल्दी ही दिख गया। सप्ताह भर के भीतर ही उनका ट्रांसफर राज्य के एक घोर नक्सल प्रभावित जिले में जिला पंचायत सी.ई.ओ. के पद पर हो गया।
उस अफसर ने अपने स्तर पर विभागीय सचिव और राज्य के मुख्य सचिव से मिलकर ट्रांसफर रुकवाने की भरसक विनती की। बीमार मां और गर्भवती पत्नी के उपचार की दुहाई भी दी, पर ट्रांसफर नहीं रुका।
अनमने ढंग से उन्होंने नई जगह पर विधिवत कार्यभार ग्रहण कर लिया। उन्हें हमेशा अपनी बीमार मां और गर्भवती पत्नी की चिंता लगी रहती थी। मां और गर्भवती पत्नी का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि नक्सल प्रभावित इलाकों में ड्यूटी करना आसान नहीं होता है।
एक दिन उस युवा अफसर को पता नहीं क्या सूझा, कि उसने फेसबुक पर एक धर्मगुरु के संबंध में कुछ प्रतिकूल टिप्पणी लिख दी।
फिर क्या था, देखते ही देखते वह पोस्ट सोशल मीडिया में वायरल हो गया। प्रदेश ही नहीं देशभर में बहस छिड़ गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष सड़क पर आमने-सामने आ गए। नगर बंद, शहर बंद की बातें होने लगी थी। न्यूज़ चैनल वाले भी बिजी हो गए थे। उन्हें बैठे-बिठाए बहस का एक मुद्दा जो मिल गया था।
राज्य के माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर देर रात उस अधिकारी का ट्रांसफर आदेश जारी कर दिया गया। उन्हें मंत्रालय में अटैच कर दिया गया था।
इस प्रकार उनकी राजधानी में वापसी हो गई।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़