*”टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है”*
“टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है”
जीवन पथ पर चलते चलते ,
न जाने ये कैसी आँधी की लहर छाई।
न कोई सूचना ना कोई अंदेशा ..
सौ साल बाद विपदा महामारी जो आई।
संकट की इस दुखद घड़ी में ,
हालात परिस्थिति सब बदल गई।
चहुँ ओर कोहराम मचा हुआ ,
संघर्षो से जूझते खतरों से खेलते ,
दर्दनाक मौत का तांडव मचाई।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है
घर पर सुरक्षित रहते हुए
एक दूजे को हिम्मत ढाढ़स बंधा रहे
मगर फिर भी हार नहीं मानी ,
हिम्मत हौसलों से जीत हासिल करने की कोशिश जारी है।
आशा की किरण उम्मीद का दामन थामा है।
अटल सत्य दृढ़ इच्छाशक्ति विश्वास जगाना बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है…! ! !
तूफानों से लड़ नैया पार करते ,
लहरों को चीरकर पहाड़ो चट्टानों से
बाधाओं से ही भवसागर पार हो तरते।
नील गगन पर चाँद की शीतलता
सोलह कलाओं में बिखरती ,
ठंडी हवाओं से शीतल छाया देती
धीरे धीरे इन चाँदनी के रंग में घुल मिल जाते ,
सुबह सूरज की किरणों का प्रकाश
रात में चाँदनी की चमक अभी बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है…..! ! !
हर मौसम ऋतु परिवर्तन से ही ,
प्रकृति उजड़ती ,बिखरती ,कभी पत्तियां
शाखाएं टूटती ,
पुनः नव सृजन बीज अंकुरण से कुदरत निखरती जाती।
हर पेड़ों की शाखाओं में नई कोपलें पल्लव आना लहराना बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है…..! ! !
टूटे गए जो छूट गए वो रिश्ते नाते
मायामोह के बंधन में उलझते गए ,
मगर गमों का ये सैलाब उमड़ पड़ा है
फिर भी मधुर संबंध एहसास जज्बात संवेदना व्यक्त करना अभी बाकी है।
बुझ गए जो चिराग अपने सगे संबंधियों के,
तम अंधकार में दीप जलाकर
तूफानों से लड़कर टिमटिमाते हुए
दीपक की लौ जलती बाती तेल अभी बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है……! ! !
रोते बिलखते परिजन का शवों को देखकर
दर्दनाक मौत हादसों जख्मी हालत गंभीर हालातों को सांत्वना ढाढ़स बंधाना ,
मगर जिगर में हिम्मत हौसला अफजाई बढ़ा सहनशक्ति जगाना बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है…..! ! !
एक दूजे से दूर रहकर बिछुड़ जाना
एकांतवास अकेलापन महसूस करते
बहुत कुछ छूट गया ,अधूरा तन्हा छोड़ दिया
मगर अभी भी कुछ मददगार हाथ सच्चे दोस्त साथी अभी बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है….! ! !
चहकती फुदकती चिड़ियों की मधुर मीठी आवाज सुनकर ,
प्रकृति के वो खूबसूरत नजारों को देखकर ,
चेहरों की गमगीन उदासी खुशियों में बदल जाती
उन कठिन परिस्थितियों को थाम लेती है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है……! ! !
दर्दनाक मौत के हादसों से दिल दहल जाता
बहते आसुंओ को देखकर लोग समझ न पाते।
ऑक्सीजन की कमी से मानव जीवन की सांस उखड़ रही है।
एक आस लिए प्रभु दर पे तेरे हाथ जोड़ खड़े हुए हैं।
प्रभु कृपामयी दृष्टि की फिर से प्रगट हो धरा पे आना बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है…..! ! !
जीवन में जो सपने संजोये थे ये क्या ..कैसा.. अजीब सा दौर आ गया
दुनिया भर को तहस नहस कर
अपनों से दूर कर दिया मिलना मुश्किल हो गया।
नियति में क्या लिखा है न जाने कोई जान नहीं सकता ।
कैसा कब किस पल अंतिम सांसों का रैन बसेरा हो …अंजान बना फिर रहा है …
अंतर्मन चैतन्य जगाते हुए करुण पुकार सुन
आज नहीं तो कल सूरज चमकेगा नई सुबह की रोशनी का इंतजार अभी बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है…..! ! !
हे प्रभु कृपामयी दृष्टि अब बरसा दो ,
नेत्र खोलकर इन अदृश्य शक्ति को नष्ट कर
विनती सुन लो अब तो हम सबका उद्धार करो।
लक्ष्मण जैसे अर्धचेतन मूर्छित हो रहे
संजीवनी बूटी अमृत समान जीवनदान दे दो।
अब प्रभु एक तेरा ही आसरा सहारा लिया
अंतिम समय में सांसो में बसे हुए सांस लेना अभी बाकी है।
टूट चुकी हूँ निखरना बाकी है……! ! !
जय श्री कृष्णा राधे राधे ?
शशिकला व्यास✍️