टूट गया अब मन का दर्पण
टूट गया अब मन का दर्पण
चुभती ही रहती हैं किरचन
जहाँ प्रेम की बहुतायत थी
संस्कारों की सिर पर छत थी
मात पिता भाई बहनों की
मिली हुई हमको जन्नत थी
याद बहुत आता है हमको
वो प्यारा भोला सा बचपन
टूट गया अब मन का दर्पण
चुभती ही रहती हैं किरचन
फूल खिलाये थे कुछ हमने
पल महकाये थे कुछ हमने
अपनी साँसों को चुन चुन कर
स्वप्न सजाये थे कुछ हमने
पतझड़ का यूँ मौसम आया
उजड़ गया है पूरा उपवन
टूट गया अब मन का दर्पण
चुभती ही रहती हैं किरचन
साँझ घड़ी जीवन की आई
जैसे ख़ुशियाँ हुईं पराई
और गलतियाँ हुई उज़ागर
अपनों से ही मिली हँसाई
मत पूछो अब गुज़र रहा है
कैसे बचा हुआ ये जीवन
टूट गया अब मन का दर्पण
चुभती ही रहती हैं किरचन
10-08-2022
डॉ अर्चना गुप्ता