टूटे सपने बिखरे अरमान
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**टूटे सपने बिखरे अरमान**
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टूटे सपने बिखरे अरमान है,
बस मेरे बाकी ये सामान है।
सहता रहता हूँ मैं अंधेर को,
जीवन जैसे होता गुमनाम है।
कंगाली – लाचारी हो दीनता,
आत्मा बेशक मेरी धनवान है।
बिस्तर पर सोया भाग्य हार है,
हद से ज्यादा भारी नुकसान है।
मनसीरत छोड़ो पागल लोग हैं,
कुदरत तो आखिर मेहरबान है।
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सुखविंदर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)