टूटे बहुत है हम
कभी भूखे रहे
तो क़भी सूखे रहे है हम
क़भी रूठे रहे
तो क़भी टूटे रहे है हम
कभी किसी को याद करके
तडपे बहुत है हम
हां तडपे बहुत है, क़भी किसी को रोता देखके
पर सादगी भरी “मुस्कान” पे
मरते बहुत है हम
क़भी बात न हो तो
जलते बहुत है हम
हां जलते बहुत है, रेगिस्तान की तरह
प्रेम बारिश का इंतजार करते बहुत है हम
कहना तो चाहते है बहुत कुछ
पर कहने से डरते बहुत है हम
हां डरते बहुत है , खोने से उनको
उनको ! पाना भी चाहते बहुत है
पर खामोश रहते बहुत है हम
“माना” कि वो मेरी है
बस! इन्ही कल्पनाओं को स्मरण करके
हँसते बहुत है हम
चूँकि छात्र ! “गणित” के रहे है हम
✍️ D k