टूटे अरमान (चौपाई)
** टूटे अरमान (चौपाई) **
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जिन्दगी खुली सीकिताब थी
मस्तियाँ बहुत बेहिसाब थी
खूब खुला आना – जाना था
ना कोई ताना – बाना था
न कोई प्रेम अफसाना था
ना किसी का दीवाना था
सुंदर परी वर्जित परिवेश था
यह जीवन यहाँ दरवेश था
जीवन में फिर बदलाव हुआ
स्थिर मन में ब दलाव हुआ
सुकन्या सुंदर सुकुमारी थी
लगी वो जान से प्यारी थी
रूप हुस्न भरी पटारी थी
सौंदर्य की खिली क्यारी थी
देख कर मंत्रमुग्ध हो गया
नैनों में उसी के खो गया
आँखे मृगनयनी सी चमके
मोरनी सी नाचती ठुमके
गजेन्द्र सी मस्त चाल चले
पानी में जैसे आग लगे
मन मोहिनी अदा ने मारा
फिरूं अभी तक मारा मारा
दर्शनों का रहूं अभिलाषी
राह ताकती आँखे प्यासी
चन्द्रमा सा सुंदर था मुखड़ा
देख जिसे भूलूँ मैं दुखड़ा
बातें ना दिल की कह पाया
सदैव रहा उस से शर्माया
भीरू प्रवृत्ति रोक दिया
हसीन स्वप्न था तोड़ दिया
सुखविंद्र अभी पछताता है
भीरूता से घबराता है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)