Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Jun 2021 · 2 min read

#कटी-पतंग

कटी-पतंग थी।
उडते-उडते गिरीं जमीन पे।
शायद हवाएँ दबंग थींं।।

कमजोर माँझा था या झोंकाएँ तेज थी।
जहाँ पे अटक गई मैं वो पथरीली रेत थी।
तेज धुप था और गहरी तपन थी।
कटी-पतंग थी।
उडते-उडते गिरीं जमीन पे।
शायद हवाएँ दबंग थींं।।

भरनी थी ऊँची उडानें।
बुलन्दीयों को छूना था।
आसमान को लपकने की थी ख्वाहिश,
पुरे फलक में उडना था।
हवाओं में उडते-उडते,
ख्वाहिशों को जीना था।
मरने का डर नहीं था।
सर पे बाँध के निकली कफन थी।
कटी-पतंग थी।
उडते-उडते गिरीं जमीन पे।
शायद हवाएँ दबंग थींं।।

बेसुध निढाल पडी थी।
लहुलुहान हर जगह से मेरी खाल पडी थी।
थक कर चूर थी,
रौनकें बेनूर थी।
दर्द से छटपटा रही थी,
कराह रही थी।
फिर भी गहराई से सफर का आकलन कर थी।
सपने के टूटने की टीस थी,
या मंजिल तक न पहुंच पाने की खीझ थी।
आत्मविश्वास डिगा नहीं था।
ये वर्षोंं के तालिम की जतन थी।
कटी-पतंग थी।
उडते-उडते गिरीं जमीन पे।
शायद हवाएँ दबंग थींं।।

ताजा था जख्म,गहरे थे घाव।
असहनीय पीडा और द्रवित थे भाव।
असहाय और लाचार,
समाज में मेरा था कुप्रचार।
गिरते-पडते,धीरे-धीरे
सम्भल रही हूँ।
दर्द के गांठ को पिघाल रही हूँ।
अब फिर से जलती लौ में
खुद को जलाना है।
तन को आग बनाना है।
फिर से ख्वाबों को जगाना है।
ख्वाबों के वृक्ष मे पहले से ही,
मैं लिपटी भुजंग थी।
कटी-पतंग थी।
उडते-उडते गिरीं जमीन पे।
शायद हवाएँ दबंग थींं।।

जागी ललक है,छूनी फलक है।
मन मे है ठानी,अभी है जवानी।
सफल कोशिश फिर से है करना,
सपनों में है जीना-मरना।
आग हूँ,आग थी।
उडता धुआँ तन से,
क्युँकि मै अब भी अग्नि प्रचण्ड थी।
कटी-पतंग थी।
उडते-उडते गिरीं जमीन पे।
शायद हवाएँ दबंग थींं।।

द्वारा कवि:-Nagendra Nath Mahto.
17/June/2021
मौलिक व स्वरचित रचना।
Bollywood में बतौर गायक,संगीतकार व गीतकार के रूप में कार्यरत।
Youtube:-n n mahto official
All copyright:- Nagendra Nath Mahto.

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 1049 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#ध्यानाकर्षण-
#ध्यानाकर्षण-
*प्रणय*
मॉं जय जयकार तुम्हारी
मॉं जय जयकार तुम्हारी
श्रीकृष्ण शुक्ल
*दूर चली जाओगी जीजी, फिर जाने कब आओगी (गीत)*
*दूर चली जाओगी जीजी, फिर जाने कब आओगी (गीत)*
Ravi Prakash
Practice compassionate self-talk
Practice compassionate self-talk
पूर्वार्थ
ख़ुद के होते हुए भी
ख़ुद के होते हुए भी
Dr fauzia Naseem shad
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
Mukesh Kumar Sonkar
"तासीर"
Dr. Kishan tandon kranti
4747.*पूर्णिका*
4747.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
गीत
गीत
Shiva Awasthi
आप वो नहीं है जो आप खुद को समझते है बल्कि आप वही जो दुनिया आ
आप वो नहीं है जो आप खुद को समझते है बल्कि आप वही जो दुनिया आ
Rj Anand Prajapati
नजरों से गिर जाते है,
नजरों से गिर जाते है,
Yogendra Chaturwedi
मैं तुलसी तेरे आँगन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की
Shashi kala vyas
मिल कर उस से दिल टूटेगा
मिल कर उस से दिल टूटेगा
हिमांशु Kulshrestha
मैं शिक्षक हूँ साहब
मैं शिक्षक हूँ साहब
Saraswati Bajpai
चूल्हे की रोटी
चूल्हे की रोटी
प्रीतम श्रावस्तवी
जीवन का प्रथम प्रेम
जीवन का प्रथम प्रेम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
World Earth Day
World Earth Day
Tushar Jagawat
रंग जाओ
रंग जाओ
Raju Gajbhiye
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
चांद चेहरा मुझे क़ुबूल नहीं - संदीप ठाकुर
चांद चेहरा मुझे क़ुबूल नहीं - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
जग-मग करते चाँद सितारे ।
जग-मग करते चाँद सितारे ।
Vedha Singh
3) मैं किताब हूँ
3) मैं किताब हूँ
पूनम झा 'प्रथमा'
दूसरों के दिलों में अपना घर ढूंढ़ना,
दूसरों के दिलों में अपना घर ढूंढ़ना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
मातृभूमि पर तू अपना सर्वस्व वार दे
मातृभूमि पर तू अपना सर्वस्व वार दे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मुझे चाहिए एक दिल
मुझे चाहिए एक दिल
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जानें क्युँ अधूरी सी लगती है जिंदगी.
जानें क्युँ अधूरी सी लगती है जिंदगी.
शेखर सिंह
निराकार परब्रह्म
निराकार परब्रह्म
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
"वक्त इतना जल्दी ढल जाता है"
Ajit Kumar "Karn"
Loading...