टूटते ख़्वावों का ताना बाना
टूटते ख़्वावों का ताना बाना
मैं 9 या 10 वर्ष का रहा हूंगा, पिताजी परिवार सहित बिलराम से कासगंज शिफ्ट हुए। मुझसे तीन वर्ष बड़ी बहिन और 6 वर्ष बड़े भाई, के साथ माताजी और पिताजी कासगंज आ गए। बिलराम कहने को तो कस्बा है परंतु रहन सहन बिल्कुल देहात जैसा है। पढ़ाई लिखाई का माहौल दूर दूर कहीं नजर नहीं आता था इसलिए हम लोगों को अपना घर छोड़कर कासगंज में किराए का मकान लेना पड़ा। हमारा परिवार गंगेश्वर कालोनी में पिताजी के साथी अध्यापक पंडित सुरेशपाल शर्मा जी के मकान में शिफ्ट होगया। पिताजी शिक्षा का महत्व समझते थे। बड़े भैया को ट्यूशन के लिए पिताजी को किसी साथी ने एक अध्यापक का नाम सुझाया, भैया के साथ मुझे भी अंग्रेजी पढ़ने वहां भेजा गया। कासगंज के सूत की मंडी स्थित एक किराए के मकान में गुरू जी रहकर हमें अंग्रेजी की शिक्षा देते थे। गुरू जी के व्यक्तित्व ने मुझ पर ऐसा असर किया तब से आज तक मेरे जीवन पर उनका प्रत्यक्ष प्रभाव कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है। जी हां डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ ने मुझे जीवन का दर्शन सिखाया है। मैंने आपके जीवन के तमाम उतार चढ़ाव बहुत करीब से देखे हैं। सोना जब तपता है तब कुन्दन बनता है। डॉ0 गगन भी ऐसे ही कुन्दन हैं जो समय और परिस्थितियों की भट्टी में तपे हैं। आपका बचपन शुद्व देहाती वातावरण में गुजरा है जहां रोजी रोटी की तलाश में ही लोगों की सुबह से शाम कब हो जाती पता नहीं चलता था, पाल्यों को शिक्षित करना या शिक्षा दिलाना बहुत दूर की कौड़ी थी।
डॉ0 गगन के गांव से शहर तो 25 किलोमीटर दूर होगा, ऐसे में गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर तथा कुआं खोदकर पानी पीने जैसी मेहनत कर उच्च शिक्षा ग्रहण की और आपने आज देशभर के साहित्यकारों में अपनी अलग पहचान बनाई है। आपने हाई स्कूल, इंटरमीडिएट, स्नातक और परास्नातक सभी परीक्षाएं प्राइवेट रूप से पढ़ाई कर उत्तीर्ण की हैं क्योंकि रेगुलर पढाई हेतु फीस देने के लिए पैसा था ही नहीं। डॉ0 गगन ने जीवन भर संघर्ष किया या यूं कहें आपने संघर्षों को अपना मित्र बना लिया था, आप संघर्षों में कभी विचलित नहीं हुए। आपने सदैव उनका सामना ही किया। परिस्थितियों से संघर्ष के साथ साथ सोरों ब्लॉक के नगला खंजी के हैडमास्टर विद्याराम से संघर्ष चला। विद्याराम को मैंने आंखों से तो नहीं देखा परंतु सुना था कि एक अध्यापक होते हुए उनका आचरण ठीक नहीं था। आपने विद्याराम के आगे घुटने नहीं टेके। ट्यूशन में भी किसी को आदरणीय गुरू जी ने कभी इसबात का आभास नहीं होने दिया कि वे मानसिक रूप से विचलित हैं। परिवार में आँटी श्रीमती मंजूलता मिश्रा को भी कभी उन्होंने इस बात का अहसास नहीं होने दिया कि वे किसी समस्या को लेकर परेशान हैं।
मेरे पिताजी बेसिक शिक्षा विभाग में ही अध्यापक थे। अधिकारियों से उनकी अच्छी पटरी खा रही थी इसलिए डॉ0 गगन जी का स्थानांतरण अपने प्रयासों से अपने ही कस्बे के महाकेन्दीय विद्यालय में करवा लाए। अब डा0 गगन जी का विद्यालय के साथ साथ ब्लॉक भी बदल गया था। और कासगंज में सूत की मण्डी छोड़कर मकान भी साहब वाला पेच में दूसरी मंजिल पर ले लिया था। डॉ0 गगन जी बहुत ही साधारण परिवार में जन्मे, आप का रहन सहन बहुत सरल और सादगी से भरा था। साहब वाला पेच में पटियाली के पास खड़ूइया निवासी सुकवि लक्ष्मीनारायण मिश्र जी अक्सर डॉ0 गगन जी के घर आया करते थे। ट्यूशन के साथ कविताओं का आनंद भी हमें मिलता था। तभी से मेरे मन में कविताओं के प्रति लगाव पैदा हुआ, और मैं अक्सर अकेले में शब्दों का जोड़ तोड़ कर तुकबंदी का प्रयास करता रहता था। डॉ0 गगन ने परिवार के अन्य सदस्यों की बीमारी में अपनी कमाई का अधिकांश हिस्सा लगाया जिसकी वजह से आप आर्थिक रूप से कमजोर ही रहे। मुझे खूब अच्छे से याद है आँटी जी बुरादे की अंगीठी पर खाना पकाती थीं। घर में दो चारपाई एक चटाई खाने पीने के बर्तन के अतिरिक्त ज्यादा सामान नहीं था। टेलीविजन, मोटरसाइकिल जैसी वस्तुएं शायद डॉ0 गगन जी के मस्तिष्क में कभी आयी भी नहीं होंगी। एक पुरानी सी साइकिल से स्कूल जाते थे। डॉ0 गगन जी की भांति ही रिश्तेदार भी नितांत पिछड़े ग्रामीण परिवेश से थे। डॉ0 गगन जी ने अपने संसाधनों से उनकी भी भरपूर मदद की। उनके लिए शिक्षा व्यवस्था से लेकर शादी संबंधों तक में आपने पूरी जिम्मेदारी निष्ठा के साथ निभाई। गरीबी से जूझते हुए डॉ0 गगन जी ने खिड़कियां मंदिर वाली गली में भी किराए के मकान में समय गुजारा, सूत की मण्डी में भी डॉ0 अशोक अग्रवाल के मकान में रहे और अशोक नगर के पास सुदामापुरी में भी आप किराए के मकान में रहे। किराए के मकान में रहकर जीवन का स्वर्णिम हिस्सा आपने एक तपस्वी की भांति काटा। कांटों पर चलना और किराए के मकान में रहना दोनों में विशेष अंतर नहीं होता।
इसी दौरान सुकवि जयमुरारी लाल सक्सेना जो रिटायर्ड डाक अधीक्षक थे उनके साथ मिलकर एक संस्था बनाई जिसका नाम ‘निर्झर’ रखा और मंचों के माध्यम से साहित्य की आराधना की। ‘निर्झर’ की आपके सहयोग से तीन पत्रिकाओं का भी प्रकाशन हुआ जिसमें एक ग़ज़ल विशेषांक भी था। आपने अनेक गोष्ठियां और कविसम्मेलन आयोजित कराए। आपने उत्तर प्रदेश में ही नहीं अपितु अन्य प्रदेशों में भी काव्य प्रतिभा का लोहा मनवाया। परिस्थितियोंवश डॉ0 गगन जी ‘निर्झर’ से अलग हो गए।
आपके सम्बन्ध डॉ0 रामरजपाल द्विवेदी जी जो एम एम डिग्री कॉलेज गाज़ियाबाद में हिंदी के विभागाध्यक्ष रहे और भाषा विज्ञान में पी0 एच-डी0 थे, से अतिनिकट के थे। कासगंज से एटा जाकर आप उनके साथ साहित्यिक चर्चाएं किया करते थे। कासगंज के मनीषी विद्वान डॉ0 नरेशचंद्र बंसल आपकी प्रतिभा के कायल थे। आपकी साहित्य के प्रति अगाध आस्था से प्रभावित होकर डॉ0 गगन के सामने एटा जनपद के कवियों के विषय में शोध करने का प्रस्ताव रखा जिसे डॉ0 गगन ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पद्मभूषण गोपलदास नीरज को डॉ0 गगन जी एटा का ही कवि मानते हैं। शोध कार्य के दौरान नीरज जी से आपकी निकटता हुई थी। डॉ0 गगन नीरज जी से मिलने अलीगढ़ आते – जाते रहते थे। डॉ0 रामरजपाल द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने अपना प्रथम काव्य संकलन “संकेत संभावनाओं के” निकाला। एटा के जिला कृषि एवं औद्योगिक प्रदर्शनी के अखिल भारतीय कविसम्मेलन में इस संकलन का विमोचन नीरज जी के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ था।
डॉ0 रामरजपाल द्विवेदी जी के सानिध्य में आपने अक्षरा साहित्यिक संस्था बनाई । संस्था के उद् घाटन कार्यक्रम में तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश रवीन्द्र शुक्ल एवं आई ए एस अधिकारी रामवचन वर्मा बुलाए थे। अक्षरा लोकप्रियता के शिखर तक पहुंची। अक्षरा ने साहित्य के क्षेत्र में अनेक अविस्मरणीय कार्यक्रम दिए। डॉ0 गगन का स्वभाव हमेशा ही समाज को कुछ बेहतर प्रदान करने का रहा। डॉ0 गगन इस दौरान बड़े बड़े मंचों पर काव्य पाठ के लिए भी गए, परंतु मंच पर कविता की सिसकन उनसे नहीं देखी गई और धीरे धीरे मंचों से वे विमुख होने लगे।
आकाशवाणी से तो उनके कार्यकर्मों का लोग बड़ी बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे। तत्कालीन कई कार्यक्रम अधिकारी डॉ0 गगन के मित्रवत थे, 1999 की बात है , मैं कविता का क ख सीख गया था तो प्रभावित होकर एकदिन आपने आगरा आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी महेन्द्र कुमार जैमिनी को चिट्ठी लिखी, जैमिनी साहब उस दिन छुट्टी पर थे , मैं उनके आवास पर पहुंच गया। जब डॉ0 गगन का लिखा पत्र जैसे ही जैमिनी साहब को दिखाया तो पहले तो पूरे सत्कार के साथ आवभगत की,डॉ0 गगन जी की कुशलक्षेम पूछी, फिर आश्वासन लेकर वापस आया। डॉ0 गगन के पास वशीकरण का जादू है। वे अपनी बातों की आकर्षण शक्ति से सामने वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व को भी अपने सम्मोहन में ले लेते हैं।
बेरोजगारी में प्राइवेट नौकरी में धक्के खाने के बाद मैंने दुर्गा कालोनी में श्री नेत्रपाल प्रतिहार चाचा के घर पर रहकर कंप्यूटर चलाना प्रारंभ कर दिया था तो डॉ0 गगन जी के प्रथम काव्य संकलन का अपने कंप्यूटर से ही लेजर सेटिंग किया था। किताब में रचित कविताएं मानव जीवन के संबंधों पर सीधा प्रहार करती हुई हैं। टाइपिंग के दौरान ही उन कविताओं ने मुझे काफी प्रभावित किया था। बीच में कम्प्यूटर जॉब वर्क छोड़कर मैं बी0 एड0 करने बरेली चला गया और बरेली से बी एड पास कर ट्रेनिंग और फिर नौकरी के लिए बस्ती जनपद (उ0प्र0) जाना पड़ा। जीवन के लगभग 8 वर्ष कासगंज से बाहर व्यतीत किए इस दौरान डॉ0 गगन जी से यदा कदा ही भेंट हो सकी। स्थानांतरण के उपरांत कासगंज आकर पुनः आपका आशीर्वाद ले रहा हूँ। कासगंज में आया तो पता चला डॉ0 गगन जी की दूसरी पुस्तक ‘हम ढलानों पर खड़े हैं’ छप के आने वाली है। कासगंज के गंगाराम विरमादेवी सरस्वती शिशु मंदिर के हाल में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे एडवोकेट मानपाल सिंह एवं वर्तमान विधायक देवेन्द्र सिंह राजपूत की गरिमामयी उपस्थिति में भव्य विमोचन हुआ। उसके बाद राजस्थान के साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा के भारत विख्यात मंच से भी आपकी पुस्तक का लोकार्पण हुआ। इस दौरान मुझे परिवार सहित ‘भारत का वेनिश शहर’ के नाम से विख्यात झीलों के नगर उदयपुर और भगवान श्रीनाथ जी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डॉ0 गगन जी के साथ कई साहित्यिक समारोहों में शिरकत करने का अवसर मुझे मिला। डॉ0 गगन का साहित्यिक कार्य अनवरत रूप से चल रहा है। इसी बीच ट्रू मीडिया के प्रधान संपादक ओम प्रकाश प्रजापति जी से संपर्क बना। पदमभूषण गोपलदास नीरज जी से काफी नज़दीकियां रहीं। नीरज जी के विराट व्यक्तित्व से प्रभावित होकर डॉ0 गगन और मैंने ट्रू मीडिया मासिक पत्रिका के सितम्बर 2018 के अंक में विशेषांक के रूप में छपवाया। जिसका भव्य लोकार्पण कासगंज के श्रीमती गंगादेवी धर्मशाला के हाल में नीरज जी के सुपुत्र, पौत्र, और पुत्रबधू, आयकर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अमरपाल सिंह, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ0 मिथलेश वर्मा, एटा के वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश चंद्र पाण्डेय, गीतकार जय, ट्रू मीडिया के प्रधान सम्पादक ओम प्रकाश प्रजापति, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 पुष्पा जोशी , सुकवि राजेश मंडार आदि की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न कराया। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप शतायु हों और जीवनपर्यंत साहित्य को नए नए आयाम देते रहें।
नरेन्द्र ‘मगन’ , कासगंज
9411999468