टूटते ख्वाहिशों की जिन्दगी
दिखने में नायाब! मगर किसी भी क्षण ढहने को बेताब!
बेमिसाल, मगर टूटती हुई ख्वाहिशों की जिन्दगी!
अकस्मात् ही,
रुक से गए जैसे जिन्दगी के रास्ते,
मोहलत भी न मिली हो
ख्वाहिशों के परिंदों को ऊड़ने की जैसे!
रूठ जो गई थी
खुद उसकी ही सांसे उससे!
मोह के धागे सब टूट चुके थे उसके….
जैसे सरकती हुई बर्फ की पहाड़ी ढह गई हो कोई,
पत्तियों के कोर पर शबनमी बूंदों की सूखती सी लड़ी,
रेगिस्तान में बनता बिगरता रेत का टीला कोई!
कभी थे कितने
प्रभावशाली, जीवन्त,
गतिशीलताओं से भरे ये जिन्दगी के रास्ते,
निर्बाध उन्मुक्त,
उड़ान भरते थे ये ख्वाहिशों के परिंदे….
पर जैसे अब टूटी हो तन्द्रा,
माया के टूटे हों जाल,
विरक्त हुआ हो जीवन से जैसे…..
दिखने में नायाब! मगर किसी भी क्षण ढहने को बेताब!
बेमिसाल, मगर टूटती हुई ख्वाहिशों की जिन्दगी!