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4 Feb 2021 · 1 min read

टूटकर भी सच कंभी कहता नहीं

जी हाँ आज अपनी सबको ऐसी पहचान दूँगा
कैद में रख जुगनुओं को अंधेरो की जान लूंगा

जो भूल गए है प्यार करना जालिम दुनियां में
उन सबको प्यार के क़ाबिल बना सम्मान दूँगा

हाँ जानता हूँ मै जमाने ने हाशिये पे रखा मुझे
आज महफ़िल में इस जमाने को उन्वान दूँगा

एक धोखा खाया की ख़ुद को समझ ना सका
अब आइने को आईना दिखाकर इम्तहान लूंगा

टूटकर भी कमबख्त सच कभी कहता नहीं क्यों
आईने का अंदाज़ हूँ शीशे में उतरकर गुमान लूंगा

शहरों में नम्बर से पहचाने जाते है नन्हे घर हमारे
मेरा तो किरदार कद्दावर हुआ पूरा आसमान लूंगा

रखोगे अपने किरदार के सब रंग छुपाकर पर्दे में
अशोक नाम है याद रखना खंजर पर जुबान लूंगा

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 476 Views
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