Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 May 2017 · 3 min read

टीवी जगत और परिपक्वता

परिपक्वता समय के साथ साथ परवान चढ़ती है । हम बच्चे से बड़े होते हैं ।अनुभव बढ़ता है ,परिपक्व होते जाते हैं ।एक बच्चे के अनुभव और परिपक्वता का स्तर किसी वृद्ध से अवश्य कम होगा —-यह एक सामान्य समझ की बात है ।
हमारे टीवी जगत पर शायद ये नियम लागू नहीं होता ।समय बीतने के साथ साथ विभिन्न चैनलों के सीरियल्स , कार्यक्रम फूहड़ता ,अपरिपक्वता तो दिखा ही रहे हैं । उनका स्तर भी बेहद हास्यास्पद होता जा रहा है ।
जब भारत में दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी ,तब बहुत सीमित कार्यक्रम आते थे ।कृषि दर्शन ,नाटक ,रविवारीय फिल्म ,चित्रहार और समाचार । अपने शुरुआती दौर में भी इन कार्यक्रमों का स्तर आज के सीरियल्स के मुकाबले कहीं अधिक उच्च कोटि का था ।एक पत्रिका कार्यक्रम आता था , जो साहित्य जगत से जुड़ा था ।कमलेश्वर ,कुबेर दत्त जैसे लोग इससे जुड़े थे । इस स्तर का एक भी कार्यक्रम आज किसी चैनल पर उपलब्ध नहीं है । दूरदर्शन का ही सुरभि कार्यक्रम उच्च कोटि का सामाजिक ,सांस्कृतिक कार्यक्रम था ।दूरदर्शन के शुरूआती दौर से आगे बढ़ें –जब दूरदर्शन पर धारावाहिक शुरू हुए वो इन धारावाहिकों का शैशव काल था । अपनी शुरुआत में ही इन धारावाहिकों ने ऐसे उच्व कोटि के मानदंड स्थापित किये की आज के सीरियल्स उनके सामने कोई c ग्रेड की फिल्म से भी गये गुज़रे हैं ।—-हम लोग ,बुनियाद ,रजनी , उड़ान ,सुबह ,कैंपस , चुनोती ,खानदान आदि धारावाहिकों की कहानी ,पात्रों का अभिनय आज भी लोग याद करते हैं । सामाजिक समस्याओं का गहन विश्लेषण इनमें मिलता है ।……इसके साथ ये जो है ज़िन्दगी जैसे कॉमेडी धारावाहिक आज भी यू ट्यूब पर सर्च किये जाते हैं । रामायण ,महाभारत तो कालजयी रहे हैं ।
साहित्य को उड़ान देने वाले –खज़ाना ,एक कहानी और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे धारावाहिक वास्तव में दूरदर्शन की धरोहर हैं । …. आज बहुत से फ़िल्मी और संगीत के चैनल हैं पर रविवारीय फिल्म और चित्रहार का जैसा लोगों को इंतज़ार रहता था वो करिश्मा कहीं नहीं है ।
जब दूरदर्शन के साथ साथ टीवी चैनल्स की शुरुआत हुई तब भी बहुत अच्छे और स्तरीय धारावाहिक प्रस्तुत हुए । सांसें , आहट , अमानत , कच्ची धूप ,इम्तिहान आदि धारावाहिक काफी प्रभावशाली थे ।
टीवी कार्यक्रमों का पतन प्रारम्भ हुआ 1995 के आस पास से । सास बहू धारावाहिकों ,परिवार के षड्यंत्र , कई कई प्रेम सम्बन्ध ,दो ,तीन विवाह ,प्लास्टिक ,सर्जरी से पात्रों का बदल जाना , मर कर जीवित हो जाना , 1000 एपिसोड तक कथा का खींचना …..इन सारे हास्या स्पद पैंतरों ने धारावाहिकों को अजीब सा कार्टून जैसा बना दिया । शायद कार्टून चैनल्स का स्तर भी इनसे काफी बेहतर है । पौराणिक पात्रों को लेकर मनगढ़ंत धार्मिक और ऐतिहासिक कथानक वाले उलजुलूल ऐतिहासिक धारावाहिक तो बिल्कुल ही गले से नीचे नहीं उतरते ।
ज्ञान ,साहित्य के कार्यक्रम तो मनोरंजक चैनल्स से गायब ही हो चुके हैं । न्यूज़ चैनल्स की तो बात करना ही व्यर्थ है ।वे किसी राजनितिक दल के प्रवक्ता अधिक हैं ।साथ ही चीखना , चिल्लाना ही उन्हें एक मात्र विश्वसनीय हुनर लगता है ।
संगीत के चैनल भी फूहड़ रीमिक्स ,बेहूदे डांस नंबर परोसने मैं मशगूल हैं । बच्चों के चैनल्स की बात करें तो कार्टून चैनल्स के कार्टून शिक्षा और मनोरंजन कम ,हिंसा , फूहड़ कल्पना और वीडियो गेम वाली मानसिकता परोसने में आगे हैं ।एक दो चैनल हैं जो क्राफ्ट ,स्किल आदि के कार्यक्रम अवश्य दिखाते हैं ।
अच्छे चैनल बहुत कम हैं ,जहां ढंग की स्तरीय बात हो ,ज्ञान ,विज्ञान ,सामाजिक मुद्दे ,साहित्य इनके प्रश्न उठाये जाएँ । इनमें लोकसभा ,राज्यसभा टीवी ,नेशनल जियोग्राफिक ,डिस्कवरी ,एनिमल प्लेनेट ,हिस्ट्री ,fy18 और एपिक चैनल बेहतर हैं ।
मुद्दा यह है कि समय के साथ साथ विकास होता है ।सभ्यता ऊपर जाती है ।नए विचारों का आगमन होता है । टेक्नोलॉजी के आने से और आयु बढ़ने से परिपक्वता आती है पर भारत का टीवी जगत तो जैसे उल्टा चला —-उसने प्रारम्भ पी एचडी स्तर के कार्यक्रमों से किया ,फिर स्नातक स्तर पर पहुंचा और आज उसका स्तर प्राइमरी से भी गया गुज़रा है ।
डॉ संगीता गांधी

Language: Hindi
Tag: लेख
318 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
प्रेम ही जीवन है।
प्रेम ही जीवन है।
Acharya Rama Nand Mandal
Vo yaad bi kiy yaad hai
Vo yaad bi kiy yaad hai
Aisha mohan
लोककवि रामचरन गुप्त के पूर्व में चीन-पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के दौरान रचे गये युद्ध-गीत
लोककवि रामचरन गुप्त के पूर्व में चीन-पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के दौरान रचे गये युद्ध-गीत
कवि रमेशराज
*लव इज लाईफ*
*लव इज लाईफ*
Dushyant Kumar
मुख्तलिफ होते हैं ज़माने में किरदार सभी।
मुख्तलिफ होते हैं ज़माने में किरदार सभी।
Phool gufran
मुक्तक
मुक्तक
Sonam Puneet Dubey
वो छोटी सी चोट पे पूरा घर सिर पे उठाने वाली लड़की...
वो छोटी सी चोट पे पूरा घर सिर पे उठाने वाली लड़की...
Kajal Singh
दोस्त बताती थी| वो अब block कर गई है|
दोस्त बताती थी| वो अब block कर गई है|
Nitesh Chauhan
ग़ज़ल-दर्द पुराने निकले
ग़ज़ल-दर्द पुराने निकले
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
छलियों का काम है छलना
छलियों का काम है छलना
©️ दामिनी नारायण सिंह
सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच
Dr fauzia Naseem shad
औरत की दिलकश सी अदा होती है,
औरत की दिलकश सी अदा होती है,
Ajit Kumar "Karn"
***** शिकवा  शिकायत नहीं ****
***** शिकवा शिकायत नहीं ****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
सच ही सच
सच ही सच
Neeraj Agarwal
हार मैं मानू नहीं
हार मैं मानू नहीं
Anamika Tiwari 'annpurna '
॰॰॰॰॰॰यू॰पी की सैर॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰यू॰पी की सैर॰॰॰॰॰॰
Dr. Vaishali Verma
" दर्द "
Dr. Kishan tandon kranti
" चले आना "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
बहुत सुना है न कि दर्द बाँटने से कम होता है। लेकिन, ये भी तो
बहुत सुना है न कि दर्द बाँटने से कम होता है। लेकिन, ये भी तो
पूर्वार्थ
पैसा आपकी हैसियत बदल सकता है
पैसा आपकी हैसियत बदल सकता है
शेखर सिंह
वह एक हीं फूल है
वह एक हीं फूल है
Shweta Soni
उन्हें हद पसन्द थीं
उन्हें हद पसन्द थीं
हिमांशु Kulshrestha
.
.
*प्रणय*
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
* हिन्दी को ही *
* हिन्दी को ही *
surenderpal vaidya
*कभी नहीं पशुओं को मारो (बाल कविता)*
*कभी नहीं पशुओं को मारो (बाल कविता)*
Ravi Prakash
"" *जब तुम हमें मिले* ""
सुनीलानंद महंत
2949.*पूर्णिका*
2949.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
उम्मीदें रखना छोड़ दें
उम्मीदें रखना छोड़ दें
Meera Thakur
सच्ची दोस्ती -
सच्ची दोस्ती -
Raju Gajbhiye
Loading...