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2 Feb 2024 · 1 min read

टाईम पास …..लघुकथा

टाईम पास ……..

“क्या बात है रघु आज अकेले कहाँ जा रहे हो ।भाभी जी साथ नहीं ।” शर्मा जी ने पूछा ।

“अरे यार वो पीहर गई है तो सोचा क्यों न आज अकेले ही तफरीह की जाए । थोड़ा टाईम पास हो जाए। अपनी घड़ी थोड़ी पुरानी हो गई है टाईम पास तो नयी घड़ी के साथ अच्छा लगता है ।” रघु ने
कहा ।

शर्मा जी ने साथ चलते चलते कहा ” यार मैं जानता हूँ तुम्हारा टाईम पास । पत्नी के होते हुए क्यों इधर -उधर क्यों मूँह मारते हो । वो तुम्हें अपना देवता मानती है और तुम …..।”

कितना स्वार्थी इन्सान । दैहिक पूर्ति के लिए कुछ मर्द पावन रिश्तों के साथ पत्नी के विश्वास को तार तार कर देते हैं । ऐसे आचरण वालों के परिणाम बहुत भयंकर होते हैं । आखिर स्वस्थ समाज का निर्माण कैसे होगा । क्या सृष्टि की यह अनमोल कृति टाईम पास के लिए है? यही सोचते हुए शर्मा जी रघु को हेय दृष्टि से देखते हुए अपने घर की तरफ चल पड़े ।

सुशील सरना /2-2-24

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