टाइटैनिक ,महामारी और विवेक
बात कुछ वर्ष पहले की है ,विवेक का १२ वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित किया गया था और वह अच्छे नंबरो से उत्तीर्ण हो गया था । विवेक खुशी से फूलें नहीं समा रहा था। बेपनाह खुशी महसूस कर रहा था। सभी विवेक के परिणाम से खुश थे । गुरु का आशीर्वाद लेने के बाद अपना दोस्तों से मिलने गया । कुछ दोस्त अपने नंबर से असंतोष भी थे लेकिन सभी दोस्तों ने मिलकर
फिल्म देखने का प्रोग्राम बना लिया । दो फिल्में सिनेमा हॉल में चल रहें थे ‘ कहो ना प्यार है’ और ‘टाइटैनिक’ । बहुत चर्चा और वाद – विवाद के बाद ‘टाइटैनिक’ देखने का मूड सभी के साथ सहमतिजताई। ‘टाइटैनिक’ १९९७ का एक रोमांटिक फिल्म है, जिसके निर्देशक, जेम्स कैमरून है। यह फिल्म टाइटैनिक के डूबने को लेकर बना थे। इसमें केट विंसलेट रोज़ डीविट बुकाटर और लियोनार्डो डि कैप्रियो जैक डॉसन की भूमिका में थे। ये दोनों पात्र को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है और वे दोनों ही उस दुर्भाग्यशाली जहाज़ के यात्री होते हैं। यद्यपि ये दोनों प्रमुख पात्र और इनकी प्रेम कहानी काल्पनिक थे। सभी दोस्तों ने यह फिल्म का मज़ा लिए और विवेक तो रोमांटिक हो चुका था। दिलों में सोच बस कि प्यार ऐसा ही होना चाहिए।
आज विवेक अच्छा एक कम्पनी में कार्यरत है और करोना की महमारी में घर बैठ कुछ रोमांटिक फिल्म देखने का चयन किया और फिर से ‘ टाइटैनिक’ फिल्म देखने चाहा।फिल्म ‘ टाइटैनिक’ ही थे लेकिन देखने के बाद नज़रियां बदल चुका था । आज फिल्म में रोमांटिक के अलावा जहाज की चालक का मनोस्थिति के बारे में सोच के सहम गए और सोचने पर बाध्य हो गया ,क्या होगी चालक की दिल और दिमाग की स्थिति जो एक बड़े सा जहाज को पानी में समाता देखा होगा । हजारों की संख्या में जान जाते देखा होगा । चालक स्वयं को कितना असहाय महसूस करता होगा ।
आज का समय हॉस्पिटल में कार्यरत डांक्टर की मनोस्थिति जब ऑक्सीजन के अभाव और हॉस्पिटल में बेड की कमी में मरीजों को जान बचाने में अपनी लाचारी को महसूस करता होगा। महामारी की ऐसे समय में भी डांक्टर अपनी जान की परवाह नहीं किए भी मरीजों की जान बचाने में लगे हुए है । धरती में डांक्टर भगवान का दूसरा रूप माने जाते है ।डुबता जहाज का चालक और डांक्टर की मनोस्थिति एक जैसी ।आज और कल की विवेक का विवेक में बदलाव है और वह सोचने पर विवश है कि महामारी की समय का कौन है , सारथी ? जिसने इतना कि आहुति ले ली,आखिर कौन ?
गौतम साव