!!*** टहलती हैं रातें ***!!
!! मुक्तक: टहलती हैं रातें !!
122/122/122/122
कोई लाख टाले न टलती हैं रातें,
बदलती हैं करवट मचलती हैं रातें।
अगर हमसफ़र ही दगाबाज निकले,
तो छत पर अकेले टहलती हैं रातें।।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव
महाराष्ट्र
!! मुक्तक: टहलती हैं रातें !!
122/122/122/122
कोई लाख टाले न टलती हैं रातें,
बदलती हैं करवट मचलती हैं रातें।
अगर हमसफ़र ही दगाबाज निकले,
तो छत पर अकेले टहलती हैं रातें।।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव
महाराष्ट्र