झूल गयी मोहब्बत मेरी,ख्वाइश और जेब की लड़ाई में,
झूल गयी मोहब्बत मेरी,ख्वाइश और जेब की लड़ाई में,
सपनों का तो आसमां था ऊँचा,पर ज़मीन फिसलती रही रुसवाई में।।
दिल चाहता था उसे अपने करीब,पर जेब की तंगहाली ने खींचा पर्दा अजीब।ख्वाहिशें थी महलों की सैर करने की,पर हकीकत ने पकड़ लिया हाथ गरीबी में।।
वो कहती थी, प्यार से बढ़कर कुछ नहीं,मैं सोचता था, शायद वो सही तो है कहीं।पर जब बात आई दुनिया के सामने,मोहब्बत झूल गई पैसों की दीवारों में।।
वो चाहती थी सपनों का शहर,मैं दे ना सका उसे, सिर्फ़ एक छोटा सा घर।ख्वाइशों ने दबा दिया प्यार का नाम,और जेब ने रोक दिया रिश्तों का अंजाम।।
मोहब्बत के उस पल में हमने बहुत कुछ खोया,ख्वाइशों का बोझ इतना भारी, कि दिल भी रोया।ज़िंदगी बस इतनी सी है,जहाँ प्यार और पैसे में हमेशा ही जंग होती रही है।।
पर आज भी वो यादें हैं दिल में कहीं,कि कैसे झूल गई मोहब्बत, ख्वाइश और जेब की इस लड़ाई में।शायद एक दिन आएगा जब ये दूरी मिट जाएगी,और मोहब्बत बिना कीमत के फिर से खिल जाएगी।।