झूला
एक वृक्ष कटा
साथ ही कट गई
कई आशाएँ
कितने घोंसले
पक्षी निराधार
सहमी चहचहाहट
वो पत्तों की सरसराहट
वो टहनियाँ
जिन पर बाँधते थे
कभी सावन के झूले
बिन झूले सावन
कितना सूना
कटा वृक्ष
वर्षा कम
धरती सूखी
पडी दरारें
न वृक्ष
. न झूला
न सावन ???