“झूठ”
” झूठ” कलयुग का महत्वपूर्ण तत्व है।सत्य कितना संभाल कर रखना पड़ता है।देखें कैसा लगता है यह “झूठ” आप को;
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“झूठ”
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जा रहा हूँ
कब लौटूँगा ?
कह नहीं सकता !!
छोड़े जा रहा हूँ ,
खूँटी झूठ की,
टंगे हैं कुछ
रंग बिरंगे
कपड़े
ओढ़ लेना
जब जी चाहे,
मौक़े के अनुसार,
अच्छे लगेंगे
दूसरी और देखना
पुलिंदे रखे हैं;
झूठ के
जितना चाहे,
ले लेना
शेष बाँट देना !
दिल खोल कर,
रखना बाक़ी पुलिंदे
संभाल कर;
काम आयेंगें।
यदा कदा;
तालों में रखी हैं
कुछ परतें झूठ की,
मत खोलना उन्हें,
न उधेड़ना उन्हें,
उधड़ गईं,
सच बाहर ,
आ जायेगा
नंगे हो जायेंगे
हम सब।
ज़रूरत हो तो,
चढ़ा लेना,
इस पर
सच का मुल्लमा*
सच टंगा है !!
सलीब पर,
हो सके तो
उतार लेना,
रख लेना संदूक में,
संभाल कर,
देखना,
दाग न लगे कहीं।
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राजेश”ललित”शर्मा
२०-१-२०१७
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मुल्लमा:परत चढ़ाना
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