झूठ का बोलबाला… (तीन मुक्तक)
झूठ का बोलबाला… (तीन मुक्तक)
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नौकरी है नहीं क्या करे आदमी
रोटियों के लिये भी मरे आदमी
झूठ का ही पुलिंदा लिये देश में
राज करने लगे मसखरे आदमी
सत्य का पेड़ देखो हुआ ठूँठ अब
हो रहा है हरा क्यों यहाँ झूठ अब
सत्य सुनकर सुनो सत्य का सारथी
हमक़दम था मेरा पर गया रुठ अब
झूठ का बोलबाला बहुत हो गया
अब शराफ़त पे भाला बहुत हो गया
अब तो बोलो कि धरती ये रोने लगी
सत्य के मुँह पे ताला बहुत हो गया
– आकाश महेशपुरी