झूठे रिश्ते
कैसी ये चाहते हैं, कैसे ये रिश्ते हैं।
अपने अपने ज़ख्म भरने को बांधी प्यार की किश्ते हैं।
एक मरहम काम न आए तो दूजा आजमाकर,
कौन किसके कितने काम आया ये सबका हिसाब लेते हैं।
अपनी खुशी, सुकून, प्यार सब पुराने घर में छोड़कर,
आंसू, रंजिशें, नफ़रत लेकर अब किराए के घर में बसते हैं।