झूठे रहनुमा
मियाँ बस रह गए तुम तो दावत-ए- इफ्तार में,
कुछ तो सोचो इब्ने आदम कौम के यलगार में।
दुश्मन सिर्फ वो नहीं जो मारे छुरा दस्तार में,
वो झूठे रहनुमा भी हैं जो ना बोले हक़ बात में!!
मियाँ बस रह गए तुम तो दावत-ए- इफ्तार में,
कुछ तो सोचो इब्ने आदम कौम के यलगार में।
दुश्मन सिर्फ वो नहीं जो मारे छुरा दस्तार में,
वो झूठे रहनुमा भी हैं जो ना बोले हक़ बात में!!