झूठी हमदर्दियां
हमको चुभती है ,ये झूठी हमदर्दियां।
और उस पर ये तेरे लहज़े की सर्दियां।
मरहम की बनिस्बत लोग ज़ख्म कुरेदते हैं।
मीठी जुबां से ,जिंदगी में ज़हर घोलते हैं
पल भर में साफ़ हो , रिश्तों की तिजारते
और हम अभी भी , महसूस करते राहतें
बहुत मुश्किल है,समझना ऐसे किरदारों को
खिज़ा का काम करके, बदनाम करे बहारों को।
भरी पड़ी है जहां में ,अब इतनी खुदगर्जिया
जैसे रखे मौला ,ये सब उसकी मर्जियां
सुरिंदर कौर