झूठ का कुहासा
हर तरफ कोहरा घना है
दंभ की हुंकार है
देश घुटनों पर खड़ा है
लोकतंत्र की जय जय कार है
नतमस्तक हो रहें हैं
दुश्मनों के होंसले
अस्त्र-शस्त्र भी ढह गये है
कुहासे में हो गए सब खोखले
आगे ही आगे बढ़ रहा
झूठ और डर का दायरा
अब नही आगे कोई
देश हो गया जड़ मूड़ सा
खेत भी अब हंस रहे हैं
और हंस रही है डिग्रीयां
संस्कृति भी घुल मिल रही है
फाइलो में बन रही
हर दिन कहानी फर्जीयां
है तिमिर का हौसला
निगल रहा है धूप को
अब कौन सूरज बनेगा..?
जो भष्म करे मिथ्याभिमान को ।।।