झुलसता पर्यावरण / (नवगीत)
०
एक
चिंगारी उठी है
इस शहर से
उस शहर तक ।
०
बाँस दंभी
ठन गए दो ,
परस्पर
टकरा गए जो ।
छा चुकीं हैं
गर्द चिनगीं ,
झुलसतीं हैं
ज़र्द फुनगीं ।
०
कूप
मौतों का खुदा है
इस डगर से
उस डगर तक ।
०
जल रही हैं
पत्तियाँ भी,
धधकतीं हैं
डालियाँ भी ।
सूखती है
नदी असमय,
शुदी में ज्यों
वदी असमय ।
०
हृदय
जलता रुआँ जैसा
इस पहर से
उस पहर तक ।
०
उठो ! साथी
जगो ! माली,
हाथ में
लेकर कुदाली ।
खोद भू
पौधे लगाओ,
बाग ये
फिर से सजाओ ।
०
जंगलों
से दुआ उट्ठी
गाँव,खेड़ों औ’
नगर तक ।
०
एक
चिंगारी उठी है
इस शहर से
उस शहर तक ।
०
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
छिरारी(रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।