झुरमुट
बादलों के झुरमुट से चाँद निकल आया है,
देखकर सौंदर्य उसका मेरा भी मन हर्षाया है।
ढूँढ़ती रही चाँद में अपने रुठे सजन को,
छिपकर चाँद ने भी रुठा-सा किरदार निभाया है।
आ गई हँसी देखकर मुझे उसको,
निकलकर बादलों से मुझे गुस्सा दिखाया है।
माँग ली मैनें भी माफ़ी कान पकड़ के,
फिर वो ना जाने क्यूँ मंद-मंद सा मुस्काया है।
चाहत है मेरी सच्ची कह दिया मैनें भी,
चाँदनी में अपनी उसने मुझे नहलाया है।
हमनें कहा संदेशा पहुँचा दो सजन तक,
दूर बैठे सजन का खुद में ही दीदार कराया है।।
प्रेम सच्चा है तेरा गोरी ! कह गया मुझको,
संदेश सच्चे प्रेम का सजन तक पहुँचाया है।
✍माधुरी शर्मा ‘मधुर’
अंबाला हरियाणा।