मजदूर का बेटा हुआ I.A.S
एक आदमी हँसती भीड़ के बीच रो रहा था,
किसी को क्या पता उसके अंदर क्या हो रहा था,
किसी खुशी में पत्थर पिघल कर पानी हो रहा था,
या अपनी बेवशी में पानी जमकर पत्थर हो रहा था।।
सामने जमी महफ़िल में उसका इतंजार हो रहा था,
वह काबिल है उसके या नहीं वह अभी बस यही सोच रहा था,
गोरी चिकनी संगमरमर पर रगड़ा हुआ पत्थर आगे बढ़ रहा था,
उसे देख वेटर खुश और क्रॉकरी नाक मुँह सिकोड़ रहा था।।
वह जमे हुए पैरों से एक एक कदम आगे ऐसे रख रहा था,
जैसे कीचड़ में सना कोई कीड़ा मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहा था,
उसकी शान में हर कोई साहब गुस्ताखी कर रहा था,
बड़ा, मजबूर था समाज, नजरें नीचे छिपाकर डर रहा था।।
जमींदोज विश्वास उसका अभी कब्र से बाहर हो रहा था,
उसको यकीन खुद पर और खुदा पर भी नहीं हो रहा था,
सामने जिसके रगड़ी है नाक उसके माता पिता ने,
आज वही दुश्मन उसका सगा सहोदर हो रहा था…।
प्रशांत सोलंकी