झुकाव कर के देखो ।
ये वहीं भाव है,
जो सब ढूंढ रहे हो,
अपने अपनो को मूंद रहे हो,
अंदर ही अंदर एक चाह है,
जुड़ने की एक आह भी है,
फिर भी क्या कुछ कौन्ध रहा है,
जो भावो को रोक रहा है,
अंत क्षणों तक रौंध रहा,
एक विडम्बना हो गई है,
मुश्किल में भी खो गई है,
कोई कर के देखें झुकाओ,
झुक जाने में कौन रोक रहा है,
अहम् है क्या उन सबके अंदर,
जीवन भर अपनो से मुँह मोड़ रहा,
फिर क्यों जीता है दर्द को लेकर,
झुकने से न ऊँचा ना नीचा,
अपना रुझान बना कर देखो,
दिल खोल कर मिल कर देखो,
भावों की सरिता बहने दो,
प्रेम का सागर भरने दो,
झुकाव वो गागर है,
थोड़ा सा झुकाव कर के तो देखो ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा,
हमीरपुर।