*झील*
झील, नदी,झरने,तालाब ईश्वर का उपहार है
मानव क्यों ये’ भूल गया अब इनसे ही संसार है
इनके बिन सब कुछ रीता अंतस में है पीर जगे
इनको सदा सुवासित रखना जीवन का आ’धार है
धर्मेन्द्र अरोड़ा
झील, नदी,झरने,तालाब ईश्वर का उपहार है
मानव क्यों ये’ भूल गया अब इनसे ही संसार है
इनके बिन सब कुछ रीता अंतस में है पीर जगे
इनको सदा सुवासित रखना जीवन का आ’धार है
धर्मेन्द्र अरोड़ा