झापन।
झापन।
-आचार्य रामानंद मंडल
विनिता हंसमुख आ बातूनी लैइकी रहे।वो दू बहिनी रहे। विनिता बड़ आ शमिता छोट रहे।एगो भाइ मोहन रहे।जे विनिता से छोट रहे। पनरह बरख के विनिता जौं नवमा में पढैत रहे तब विनिता के बाबू शिव प्रसाद वोकर बिआह संवलपुर के विधुर जयकांत से कै देलथिन।जयकांत ग्राम सेवक रहे।हुनका एकटा बेटी आ एकटा बेटा रहे। बेटा बहुत बहुत बाद में भेल रहे।
बेटी त विनिता के उमर के रहे। बेटी सुजाता के बिआहो भे गेल रहे। बेटा मोहन पांच बरस के रहे त जयकांत के पत्नी के अकस्मात मृत्यु भे गेल रहे।
विनिता अब हंसमुख आ बातूनी नै रह गेल।वो आबि गंभीर आ मितभाषी बन गेल।आबि त वो तीनटा लैइकी आ एकटा लैइका के माय बन गेल।एतबे न वो सास भी बन गेल।एगो लैइकी के बिआह के बाद पारिवारिकता आ सामाजिकता के निर्वाह त करिहे के पडैय छैय।भले वो उमर आ अनुभव में परिपक्व भले न होय।
दू बरख बीत गेल। अचानक जयकांत के मृत्यु भ गेल।
विनिता विधवा भे गेल।हाथ के चुड़ी टूट गेल।मांग के सेनुर धो आ गेल।उजरि सारी पहने के भेल। चेहरा उजरि आ सपाट भे गेल।कनैत कनैत आंखि के गढ़ा कारी हो गेल।पेटकोनीय पलंगरी पर परल रहे लागल।
बहुत कर कुटुंब सभ समझैलक। बाबू माय समझैलक। मृत्यु केकरो हाथ में न हैय।बिधना के जे लिखल हैय।वोहे होय छैय।अपना लिखल के बिधना न मिटा सकै छैय।आबि त अहिना जीबै पड़तैय।आबि बाल बच्चा के देखे के पड़तौअ।
विनिता के आंसू सुख गेल। सामाजिक आ पारिवारिक काज मे लागि गेल।गम आबि काज में धीरे धीरे गुम होय लागल।आबि कभी कभी कोनो बात पर हंसे भी लागल।उन्नीस बरख के औरत आबि अपन रूप निखारे लागल। कभी कभी अपन बिआह बाला सारी आ गहना भी पेन्हे लागल। आंखि में काजर भी लगा लेबे।
परंच परिवार के लोग कुछ न कहे। बल्कि सांत्वना दैत आह भी भरे कि भरल जवानी में बेचारी बिधवा भे गेल।घाव भी समय पर भरि जाय छैय।इ त जवान हैय।
धीरे धीरे विनिता आबि अपन देयाद में के देवर मणिकांत में रूचि लेबे लागल। हालांकि मणिकांत भी बाल बच्चेदार रहे।परंच विधवा भाभी के मन लगाबे के लेल वोहो मजाक करे लागल। धीरे धीरे इ मजाक आबि शारीरिक छेड़छाड़ तक पहुंच गेल। जौं इ देबर भाभी के हंसी मजाक होय लागे त परिवार के लोग वोइ जगह से हट जाय। कि देवर भाभी के हंसी मजाक आ गपशप में बाधा न होय। परिवार के इ डर होय कि एतबा छूट न देबै त विनिता के मन कोनो दोसर युवक के संग लग सकै हैय। कारण कि विनिता अभी जवानी से गुजर रहल हैय। जवानी के समय बीत गेला पर सभ ठीक हो जतैय। जवानी के आगि त विधवा के राखि से झपल रहै छैय। कोनो जवान पुरुष के प्रेम हवा से वो आगि प्रज्वलित होय जाय छैय।जवान विधवा के पैर घर से बाहर निकल सकै हैय।त वोइ से सामाजिक इज्जत पर आंच आबै छैय।तैइला घर में कुछ छूट देल जाय छैय। कारण कि कुलिन वर्ग में विधवा के बिआह करे पर सामाजिक रोक हैय।
विनिता आ मणिकांत के इ छूट शारीरिक संबंध बनाबे के लेल सहायक बनल।आबि त दूनू के शारीरिक सम्बन्ध के चर्चा घर में होय लागल।परंच घर के बड़ बुजुर्ग के कहल रहे के जै परिस्थिति में विनिता हैय ।अइ स्थिति में झापन देना आवश्यक हैय।इ कुल आ परिवार के इज्जत बचाबे के लेल जरूरी हैय।
विनिता आइ साठ बरख में मोहन के धिया पुता के बुढ़िया दादी बन गेल हैय।आइ वो पारिवारिक आ सामाजिक इज्ज़तदार महिला मानल जाइ हैय।
स्वरचित © सर्वाधिकार रचनाकाराधीन
रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।