झांक रहा हूँ मैं
झांक रहा हूँ मैं तेरी नज़र की खिड़की से
झांक रहा हूँ मैं तेरी नज़र की खिड़की से
तू भी देख ले मुझको जाकरआईने में
थामे बेठा हूँ मैं तेरेअश्को को खड़की पे।
ये दुनियां ये रिश्ते नाते मुझे जीना न दे
तू आजा एक बार खवाबों की लकीरों के पार
पलके मेरी जहा बिछी है तेरी सड़को पे।
अब कौन कहेगा मुझे तनहा की मैं मेरा हूँ
तेरा होकर भी मैं कितना गहरा अँधेरा हूँ
तू चांदनी बनकर मुस्कुराती बिखरजा इस अंदर पे।
खुद ही खेलता रहता हूँ अपनी परछाई से
मुझे गम भी नहीं सताता अब तन्हाई में
तुम बन गए हो मेरा ठहरा वक़्त हर उठे कदम पे।
©तनहा शायर हूँ