झरना
शीर्षक- झरना
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निर्जन वन में
लगातार बहता हुआ झरना
कभी न रुकने
कभी न झुकने का सबब है
नितांत अकेले वन में
विचरता रहता है
जो सबब है कि
जिंदगी कभी नहीं रुकती ।
शास्त्र सा पूज्य है
मंत्र सा अचूक है
वेद सा पवित्र है
जिसके सम्मुख
झुकने का मन करता है मेरा।
जिंदगी कभी चलती है
कभी रुकती है
ओर हम इसे सुख दुःख का
पैमाना मान लेते हैं
लेकिन निर्विरोध ,निर्विवाद
सुख दुःख से परे
चलता रहता है यह झरना ।
प्रकृति ने सजाया है
सलोने हरितमय श़ृंगार से इसको
लेकिन कभी गुमान नहीं किया
उसने इस अप्रतिम सौन्दर्य पर
हमेशा दूसरों को
खुशियाँ देने को तत्पर रहा झरना ।
इंसान में कहाँ से आ गया
यह घृणा ओर भेद भाव
जिसे हम समझते रहे निर्जीब
वह दे रहा है प्रेम ,प्रेमिका सा
इंसान निरुत्तर है
लेकिन दे रहा जवाब यह झरना।
फूलों की खुशबू
सावन की घटाए
प्रेमिका का प्रेम
शून्य से अनंत तक
सब तुमसे हे झरना ।
तुम कभी रुकना नहीं
तुम कभी झुकना नहीं
आगे ही बढ़ते जाना
बस बढ़ते जाना
सबब हो
इंसान की प्रगति के
तुम झरना ।
राघव दुवे
इटावा (उ०प्र०)
8439401034