झरना
झरने पर ना जाने क्या लिखकर डाला
पढ़ ना पाया जाने क्या लिखकर डाला
पहाड़ों से यह क्या धरा पर उतर आया
शरीर से हृदय तक मदमस्त कर डाला
बेरंग सा है पर सप्तरंग समेटे बह रहा
पल्लवित रोम रोम में अमृत भर डाला
हर क्षण हर कण गिरि पर थाप दे रहा
संगीत रानी वीणा सा सुरमय कर डाला
फुव्वारों का आभा मंडल विस्तार दे रहा
छिटकी थकान शरीर में जोश भर डाला
ऊपर से अनवरत नीचे स्थान बना रहा
नदी नालों में जीवन रस को भर डाला
लक्ष्मण सिंह
जयपुर (राजस्थान)