झंडे का सत्कार किया करते हो
जब तुम अपने झंडे का सत्कार किया करते हो
क्यों तेरा मेरा कहकर तकरार किया करते हो
कुदरत से हम सबको ही कितने प्यारे रंग मिले
तरह तरह के रंगों के जगह जगह पर फूल खिले
फिर क्यों अपने रंगों से ही प्यार किया करते हो
जब तुम अपने झंडे का सत्कार किया करते हो
क्या मरते को जीवन भी दे सकते हो तुम जग में
यूँ जीवन धन लेने का अधिकार मिला किस मग में
मानवता का फिर तुम क्यूँ संहार किया करते हो
जब तुम अपने झंडे का सत्कार किया करते हो
लाल लहू ही बहता है हर प्राणी की रग- रग में
एक कहानी ही होती जीने मरने की जग में
धर्मो में क्यों बाँट खड़ी दीवार किया करते हो
जब तुम अपने झंडे का सत्कार किया करते हो
अपने प्राणों से सीमा की जो रखवाली करते
आपस में लड़ कर उनकी तुम रातें काली करते
वीरों की कुर्बानी क्यों बेकार किया करते हो
जब तुम अपने झंडे का सत्कार किया करते हो
डॉ अर्चना गुप्ता