झंडा गायन (स्वतंत्रता गणतंत्रता दिवस) देश का ये तिरंगा…
झंडा गायन (स्वतंत्रता गणतंत्रता दिवस)
देश का ये तिरंगा झुका है कहाँ
वो थे पागल जो उसको झुकाने चले
सरफरोसो की तमन्ना से बना ये ध्वज
पूरे विश्व को इसे हम दिखाने चले …
देश का ये तिरंगा झुका है कहाँ
वो थे पागल जो उसको झुकाने चले
सरफरोसो की तमन्ना से बना ये ध्वज
पूरे विश्व को इसे हम दिखाने चले
लोटता है ये जब एक शहीद के संग
सबको दिल से अपने लगाता है ये
तिरंगे के ही साये मे रोज हर एक पल
देश को यूहीं आगे बढ़ाता है ये
बढ़ता जाये मेरा ध्वज बस मनसा यही
अपने शौर्य और यश को यू बढाता रहे
करके हर एक को नव ऊर्जा मे अब
है यही आश सब मे जलाने चले
वो थे पागल जो उसको झुकाने चले
सरफरोसो की तमन्ना से बना ये ध्वज
पूरे विश्व को इसे हम दिखाने चले
पूरे विश्व को यही अब दिखाने चले…
सबकी सांसो मे बसा ये राष्ट्र ध्वज
रोज झिलमिल यूहीं लहराता रहे
सेना के जोश से सबके सरफरोस से
रोज तिरंगा ये सबको बढाता रहे
एक दिन आ जाये तेरे ही काम
प्रण मिल के ये सब हम बनाने चले
वो थे पागल जो उसको झुकाने चले
सरफरोसो की तमन्ना से बना ये ध्वज
पूरे विश्व को इसे हम दिखाने चले …
देश का ये तिरंगा झुका है कहाँ
वो थे पागल जो उसको झुकाने चले
सरफरोसो की तमन्ना से बना ये ध्वज
पूरे विश्व को इसे हम दिखाने चले
लक्ष्मी नारायण उपाध्याय
तर्ज :- वक्त का ये परिन्दा रुका है कहाँ