झंझा झकोरती पेड़ों को, पर्वत निष्कम्प बने रहते।
झंझा झकोरती पेड़ों को, पर्वत निष्कम्प बने रहते।
विचलित होते सामान्य पुरुष, नरवीर सुशान्त तने रहते।।
हम पढ़ते प्रतिदिन पाठ यही, हर मुश्किल में मुस्काने का,
जीवन भंगुर, ध्रुव मरण मान, रण में निर्लिप्त सने रहते।।
— महेश चन्द्र त्रिपाठी