ज्योति कितना बड़ा पाप तुमने किया
(शेर)- कैसे बदल गये हैं रिश्तें , विश्वास किसपे करें।
चाहत है सबको दौलत की, प्यार किससे करें।।
यह कैसा युग है कि, खून रिश्तों का हो रहा है।
बताओ कौन किस पर कैसे, अब यारों गर्व करें।।
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ज्योति कितना बड़ा पाप, तुमने किया।
प्यार – रिश्ता कलंकित, तुमने किया।।
ज्योति कितना बड़ा——————-।।
कर्जा लेकर पढ़ाया, पति ने तुम्हें।
एक अफसर बनाने को, उसने तुम्हें।।
उसके विश्वास का खून, तुमने किया।
ज्योति कितना बड़ा ———————।।
पद- दौलत देखकर, तुमने छोड़ा पति।
मौजो- सुख देखकर, तुमने बदला पति।।
धोखा अपने पति से, तुमने किया।
ज्योति कितना बड़ा——————-।।
कल नहीं देगी साथ, तेरा तेरी हंसी।
बहुत नफरत करेगी, तुमसे तेरी खुशी।।
ख्याल बदनामी-बच्चियों, तुमने नहीं किया।
ज्योति कितना बड़ा ———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)