ज्यों ही किया निकाह
मैने उनकी याद से, ज्यों ही किया निकाह !
कविता करने की बढ़ी,स्वत: और भी चाह !!
मैने खुद ही तोड दी,. रिश्तों की वह डोर!
करती थी दिल से मुझे, प्राय: जो कमजोर!!
सद्कर्मों से ही मिले,.यश वैभव सम्मान!
सोलह आने सत्य यह,बात समझ नादान! !
रहा भूख औ प्यास का,मुझे कहाँ फिर ध्यान!
आया हाथों में जहाँ, ..ग़ालिब का दीवान!!
रमेश शर्मा.