ज्यों स्वाति बूंद को तरसता है प्यासा पपिहा ,
ज्यों स्वाति बूंद को तरसता है प्यासा पपिहा ,
यूं ही वर्षा की एक बूंद को मेरा मन तरस रहा ।
पपीहे की प्यास और मेरे मन की आस ,
दोनो से ही अंजान हाय! यह ईश्वर हो रहा ।
ज्यों स्वाति बूंद को तरसता है प्यासा पपिहा ,
यूं ही वर्षा की एक बूंद को मेरा मन तरस रहा ।
पपीहे की प्यास और मेरे मन की आस ,
दोनो से ही अंजान हाय! यह ईश्वर हो रहा ।