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21 Jun 2024 · 1 min read

ज्यों स्वाति बूंद को तरसता है प्यासा पपिहा ,

ज्यों स्वाति बूंद को तरसता है प्यासा पपिहा ,
यूं ही वर्षा की एक बूंद को मेरा मन तरस रहा ।
पपीहे की प्यास और मेरे मन की आस ,
दोनो से ही अंजान हाय! यह ईश्वर हो रहा ।

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