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26 Feb 2022 · 3 min read

ज्ञान

बहुत टाइम से एक धर्मगुरु हैं उनको सुनती आ रही हूँ , नाम लेना उचित नहीं समझती , अभी तो बहुत समय से माननीय मलेशिया भाग गए हैं भारत छोड़ के , लेकिन उनका एक ही काम है हमारे सनातन धर्म की तुलना अपने धर्म से करना और फिर अपने धर्म को महान बताते हुए ये कहना की – वेदों में ऐसा लिखा है उपनिषदों में ऐसा लिखा है , और तो और वो श्लोकों का मतलब अपने हिसाब से निकालते हैं ये कहते हुए की हमारे वेदों में हमारे उपनिषदों में आदरणीय मोहम्मद साहब के आने का ज़िकर किया है , देखिये सभी धर्म अच्छे हैं सभी धर्मों के आदरणीय भी अच्छे हैं लेकिन गलत व्याख्या कर के किसी भी धर्म , पंथ या समाज को निचा दिखाना उचित नहीं है , वेदों और उपनिषदों में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है और सनातन धर्म के इतिहास के साथ बहुत छेड़ छाड़ हुई है बहुत से तथ्य हर काल में बदले गए हैं,

अब समस्या ये है की उन महानुभाव से कोई भी शास्त्रार्थ यानि डिबेट नहीं कर पाता क्योंकि हमारे सनातनियों की समस्या ये है की वो स्वयं ही कुछ नहीं जानते तो शास्त्रार्थ तो दूर की बात है , बहरहाल हम कब खंडन कर सकते हैं की अगले ने श्लोक का गलत मतलब बताया ? जब जबकि हम खुद जानते हो , जब हम ही नहीं जानेंगे तो दूसरों को क्या बताएँगे , यहाँ मैं आपसे कुछ सटीक तथ्य साझा करती हूँ , आप भी अपने दोस्तों परिवार समाज से साझा करें –

(१) वेद विश्वसनीय हैं जिसमे सबसे विश्वसनीय ऋग्वेद है |

(२) १०८ उपनिषदों में शुरू के सिर्फ ८-१० उपनिषद ही विश्वश्नीय हैं बाकि सब बहुत बाद में लिखे गए हैं और प्रछिप्त हैं |

(३) पुराण बहुत बाद में लिखे गए हैं तो पुराणों में लिखी हुई बातों का हवाला देना बहुत उचित नहीं क्योंकि पुराणों पर समय काल की गतिविधियों और अतिश्योक्ति मिलती है और लोगों ने समय समय पर मिलावट की है |

(४) अक्सर लोग यजुर्वेद के एक श्लोक
‘न तस्य प्रतिमा अस्ति’
का बहुत उदहारण देते हैं की हमारे सनातन धर्म में भी एक ही ब्रम्ह की संकल्पना है की उसकी कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं होती तो मैं ये बताना चाहूंगी की ये सही है की एक ब्रम्ह की संकल्पना हमारे सनातन में भी है लेकिन यहाँ इस श्लोक में प्रतिमा का मतलब मूर्ति वाली प्रतिमा से नहीं बल्कि उपमा प्रतिमान से है की उस ब्रम्ह की किसी से कोई तुलना नहीं कोई उपमा नहीं उसकी तो लोग इस श्लोक की बड़ी गलत व्याख्या करते हैं |

(५) यह सही है की ब्रम्ह एक है लेकिन जो संकल्पना ब्रम्ह की और जगहों या और धर्मों में है उससे भिन्न है, और धर्मावलम्बियों के अनुसार ब्रम्ह का जगत अलग है और जीव का अलग लेकिन हमारे यहाँ ब्रम्ह का कांसेप्ट ये है की ब्रम्ह एक है लेकिन ब्रम्ह का थोड़ा थोड़ा अंश सब प्राणी मात्र में विद्यमान है

अब कुछ मूरख कुतर्क करते हैं की तो ब्रम्ह तो अपराधी में भी hai तो पापी भी भगवन है तो आप बताएं जब बालक पैदा होता है तो क्या वो पापी होता है ? नहीं न ? आगे चल के हम अपने अच्छे या बुरे कर्मों द्वारा अपने अंदर के ब्रम्ह को जागृत या समाप्त कर देते हैं |

तो ब्रम्ह सब जगह है वो एक होकर भी हर एक में है तो अगर कोई मूर्ति पूजा कर रहा या ब्रम्ह को राम कृष्णा जीजस या रहीम कह रहा तो ये उसकी आस्था है वो इनमे ब्रम्ह को ही देख रहा ,

यह सत्य है की वेद में मूर्तिपूजा आदि का उल्लेख नहीं मूर्तिपूजा काफी बाद में शुरू हुई लेकिन अगर कोई ब्रम्ह से मूर्तिपूजा के ज़रिये कनेक्ट हो रहा तो ये उसकी आस्था है तो किसी को उसके जीवन के अंत में नरक या स्वर्ग मूर्तिपूजा करने या न करने के कारन नहीं मिलेगा बल्कि अपने कर्मों के हिसाब से मिलेगा •
अंत में अपने लेख को ये ही कहते हुए विराम दूंगी की लोग गलत बातें प्रचारित प्रसारित करने में तभी सफल होते हैं जब तक की आप स्वयं ज्ञान न रक्खें और ज्ञान हर चीज़ का होना आवश्यक है |

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 335 Views
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