ज्ञान रहे सब पेल परिंदे,
ज्ञान रहे सब पेल परिंदे,
होती है फिर जेल परिंदे।
सच है इक दिन हारेगा तू,
जीवन का यह खेल परिंदे।
भूखे नंगों से, है ज़्यादा,
आवश्यक राफेल परिंदे।
सच के राजमहल में चलती,
झूठ की लंबी रेल परिंदे।
जुर्म बड़ा हो चाहे कितना,
झटपट मिलती बेल परिंदे।
देख मिलावटखोरी की हद,
घी में दुगना तेल परिंदे।
बाहर चौकीदार खड़ा पर,
अंदर रेलम पेल परिंदे।
थे आपस में जानी दुश्मन,
उनमें है अब मेल परिंदे।
स्वाद सियासत का है कड़वा,
होकर चुप बस झेल परिंदे।
पंकज शर्मा “परिंदा”