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4 Mar 2024 · 5 min read

*ज्ञान मंदिर पुस्तकालय*

ज्ञान मंदिर पुस्तकालय
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रियायती शासनकाल में भारत की स्वतंत्रता से पूर्व रामपुर में जो पुस्तकालय शुरू हुए, ज्ञान मंदिर उनमें से एक है। इसका इतिहास स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहित करने तथा इस दिशा में कार्य करने वाले सेनानियों का खुलकर अभिनंदन करना रहा है।
1927 के आसपास रामपुर में ‘हिंदू प्रोमिजिंग क्लब’ ने काम करना शुरू किया। साहित्यिक संस्था के रूप में हिंदू प्रोमिजिंग क्लब ने देश की आजादी और स्वाभिमान के लिए कार्य किया। इसी के कुछ समय बाद एक अन्य संस्था ‘स्काउट बॉयज लाइब्रेरी’ शुरू हुई। यह भी एक साहित्यिक और स्वतंत्रता की अभिलाषा से प्रेरित कार्य था। स्काउट बॉयज लाइब्रेरी और हिंदू प्रोमिजिंग क्लब का विलय होकर 1930 में ‘हिंदू प्रोमिजिंग स्काउट एसोसिएशन’ बनी। इसी वर्ष 1930 में आचार्य कैलाश चंद्र देव बृहस्पति ने हिंदू प्रोमिजिंग स्काउट एसोसिएशन का नामकरण ‘ज्ञान मंदिर’ किया।

ज्ञान मंदिर के शुरुआती दिनों से जुड़े हुए व्यक्तियों में शांति शरण, कल्याण कुमार जैन शशि, रामेश्वर शरण गुप्ता, डॉक्टर देवकीनंदन होम्योपैथ के नाम विशेष रूप से लिए जा सकते हैं। ज्ञान मंदिर पुस्तकालय की पुस्तकों में देश की आजादी का पाठ पढ़ाया जाता था। ज्ञान मंदिर का भवन आजादी से पहले मिस्टन गंज में ‘पुराने पंजाब नेशनल बैंक’ के ऊपर पहली मंजिल पर स्थित था। जब सतीश चंद्र गुप्त एडवोकेट और नंदन प्रसाद देश की आजादी के लिए जेल से छूटकर बाहर आए तो ज्ञान मंदिर पुस्तकालय ने उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया था। आचार्य बृहस्पति ने सम्मान में काव्य पाठ किया था।

1960 के आसपास ज्ञान मंदिर एक रजिस्टर्ड संस्था बनी। 12 मई 1951 को ज्ञान मंदिर में जयप्रकाश नारायण पधारे।
ज्ञान मंदिर पुस्तकालय ने रामपुर रियासत में पहली बार 1934 में ‘अखिल भारतीय हिंदी कवि सम्मेलन’ का आयोजन किया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता गीता मर्मज्ञ संत कवि पंडित दीनानाथ भार्गव दिनेश ने की थी। ज्ञान मंदिर पुस्तकालय का यह आयोजन रामपुर में हिंदी के प्रचार और प्रसार की दृष्टि से मील का पत्थर बन गया।
ज्ञान मंदिर पुस्तकालय को नि:स्वार्थ हिंदी सेवियों का सहयोग मिला। प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल ने अवैतनिक लाइब्रेरियन के तौर पर काम किया। कल्याण कुमार जैन शशि ने पुस्तकालय की देखभाल करते हुए अगर झाड़ू भी लगानी पड़ी तो संकोच नहीं किया।

आजकल ज्ञान मंदिर पुस्तकालय मिस्टन गंज के चौराहे पर एक विशाल भवन में स्थित है। जब रामपुर में जिलाधिकारी शिवराम सिंह कार्यरत थे तब नए भवन में संस्था के स्थानांतरण का पथ प्रशस्त हुआ था। इस स्थान पर ‘उल्फत शू फैक्ट्री’ किराए पर थी। इसके आवंटन की अवधि समाप्त हो चुकी थी। संस्था के पदाधिकारी ज्ञान मंदिर को उक्त भूमि आवंटित करने के लिए प्रयत्नशील थे। उन्होंने प्रार्थना पत्र दिया। संस्था के एक पदाधिकारी उस समय महेंद्र प्रसाद गुप्त थे। उन्होंने ज्ञान मंदिर को भूमि आवंटित करने के लिए जिलाधिकारी महोदय से जबरदस्त आग्रह किया था। जिलाधिकारी शिवराम सिंह ने ज्ञान मंदिर के समर्थन में अपनी आख्या दे दी। इस प्रकार ज्ञान मंदिर अपने नए भवन में पूरी सज-धज के साथ स्थानांतरित हुआ।
पुस्तकालय में हजारों प्राचीन साहित्यिक-राजनीतिक पुस्तकों का भंडार है। अध्ययन कक्ष की दीवारों पर ऊॅंची अलमारियॉं बनी हुई हैं और उनमें यह पुस्तकें सुरक्षित हैं । पुस्तकालय में दैनिक अखबार भी आते हैं।
वर्तमान में पाठकों की दिलचस्पी पुस्तकालय में जाकर ज्ञान अर्जित करने की कम हो गई है। अतः पाठक कोई-कोई ही आते हैं। ज्ञान मंदिर पुस्तकालय द्वारा रामपुर और उसके आसपास के जनपदों से हिंदी सेवियों को हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में पुरस्कृत करके हिंदी की प्रतिष्ठा और सम्मान में अभिवृद्धि करने के लिए सराहनीय प्रयास किए जाते हैं।
ज्ञान मंदिर पुस्तकालय का स्थापना-वर्ष
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ज्ञान मंदिर पुस्तकालय में दीवार पर एक सूची लिखकर टॅंगी हुई है। इसमें पुस्तकालय का स्थापना वर्ष 14 जनवरी 1902 अंकित है। पुस्तकालय के संस्थापकों में तीन नाम हैं
1) सर्व श्री उमराव सिंह
2) लक्ष्मी नारायण
3) साहू केशोदास

इनमें से साहू केशोदास का नाम साहू केशो शरण के रूप में अधिक प्रसिद्ध था।

पुस्तकालय के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री प्रवेश कुमार रस्तोगी से दिनांक 13 मार्च 2024 को पुस्तकालय में बैठकर बातचीत करने पर पता चला कि साहू केशो शरण जी की संपत्ति मिस्टन गंज स्थित पुराने पंजाब नेशनल बैंक के ऊपर छत पर एक कमरे में ज्ञान मंदिर पुस्तकालय की शुरुआत हुई थी।
पुस्तकालय में लिखित सूची को उन्होंने पढ़वाया और बताया कि ज्ञान मंदिर में महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, जयप्रकाश नारायण, सेठ गोविंद दास और डॉ राम मनोहर लोहिया जैसी विभूतियॉं पधार चुकी हैं।
पुस्तकालय में प्रवेश कुमार रस्तोगी जी के अनुसार एक रजिस्टर भी है, जिसमें महान विभूतियों के हस्ताक्षर और संदेश अंकित किए जाते रहे हैं।
प्रवेश कुमार रस्तोगी जी ने यह भी बताया कि ज्ञान मंदिर पुस्तकालय सुबह और शाम दोनों समय 6:00 बजे से 9:00 बजे तक खुलता है। पुस्तकालय को डिजिटल युग के अनुरूप नया स्वरूप देने की अपनी इच्छा भी उन्होंने व्यक्त की।

संयोगवश 1996 में जब इन पंक्तियों के लेखक का अभिनंदन ज्ञान मंदिर पुस्तकालय द्वारा किया गया था, तब अभिनंदन पत्र के एक पदाधिकारी के रूप में प्रवेश कुमार रस्तोगी जी के ही हस्ताक्षर थे।
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ज्ञान मंदिर पुस्तकालय द्वारा हमारा अभिनंदन : वर्ष 1996
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एक दिन घर के दरवाजे की घंटी बजी । मैं बाहर गया । देखा शहर के प्रतिष्ठित 7 – 8 महानुभाव घर के दरवाजे पर उपस्थित थे। उन्हें आदर सहित ड्राइंग रूम में लाकर बिठाया तथा पिताजी को सूचना दी कि कुछ व्यक्ति आपसे मिलने आए हैं। मैं भला यह कैसे सोच सकता था कि वह मेरे अभिनंदन के सिलसिले में ही पधारे हैं !
पिताजी आए । आगंतुक महानुभावों ने अपने आने का कारण बताया । कहा “रवि प्रकाश जी को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए ज्ञान मंदिर पुस्तकालय की ओर से सम्मानित करना चाहते हैं ।”
पिताजी ने तुरंत सहमति व्यक्त कर दी। मैं क्या कह सकता था ? नियत दिन और समय पर मैं ज्ञान मंदिर पहुंच गया । मेरा अभिनंदन हो गया और मैं अभिनंदन-पत्र लेकर घर आ गया । यह 1996 की बात है। करीब 25 साल बाद अलमारी को खँगाला तो वह अभिनंदन-पत्र अकस्मात प्रकट हो गया । जिन-जिन व्यक्तियों ने मुझे उस समय अभिनंदन के योग्य समझा ,उनका हृदय से आभार ।

ज्ञान मंदिर जब मिस्टन गंज में कूँचा भागमल/मंदिर वाली गली के सामने पुराने पंजाब नेशनल बैंक की छत पर स्थित था ,तब मैं बचपन में वहाँ किताबें इशू कराने के लिए चला जाता था। “आनंद मठ” मैंने वहीं से लाकर पढ़ा था। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के और भी कई उपन्यास मैंने वहां से लाकर पढ़े थे । जीना चढ़कर जाया जाता था । जब मेरा अभिनंदन हुआ था तब उससे काफी पहले से ही ज्ञान मंदिर मिस्टन गंज के नए भवन में शिफ्ट हो चुका था ।

‌अभिनंदन पत्र में मेरा नाम “रवि प्रकाश अग्रवाल सर्राफ” लिखा गया था । मैं तो केवल रवि प्रकाश नाम से ही लिखता था, आज भी लिखता हूँ। “अग्रवाल” शब्द की खोज जब मैंने 2019 में की और तदुपरांत महाराजा अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवाल समाज पर अपना अध्ययन “एक राष्ट्र एक जन” पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया तब स्वयं को अग्रवाल कहने और बताने में मुझे अत्यंत गर्व का अनुभव होने लगा। मेरे नाम के साथ “सर्राफ” शब्द मेरे ईमेल में जुड़ा हुआ है । इसकी भी एक कहानी यह है कि रवि प्रकाश नाम से ईमेल नहीं बन रहा था। उसके साथ कुछ संख्या लिखनी पड़ रही थी, जो मुझे पसंद नहीं थी । “सर्राफ” शब्द लिखने से तुरंत ईमेल एड्रेस बन गया । इस तरह 1996 के अभिनंदन पत्र पर रवि प्रकाश अग्रवाल सर्राफ बिल्कुल सही लिखा गया था ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज)
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
Email : raviprakashsarraf@gmail.com
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संदर्भ:
1) रामपुर के रत्न ,लेखक रवि प्रकाश, प्रकाशन वर्ष 1986
2) मेरी पत्रकारिता के साठ वर्ष, लेखक महेंद्र प्रसाद गुप्त, प्रकाशन वर्ष 2016

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