ज्ञान क्या है?
दस पुस्तकें पढ़कर खुद को विद्वान मानने वाला नया विचार मुख्य धारा से जुड़े लोगों का होने लगा है। और दुष्प्रभाव यह है कि विद्वान प्रताड़ित किए जाने लगे हैं।
ज्ञान की आवश्यकता यूं तो मूढ़ व्यक्तियों को है,लेकिन अगर वो इस आवश्यकता को समझ पाते तो वो मूढ़ क्यों रहते?
ज्ञान क्या है?
इसका तर्क संगत जवाब देना आसान नहीं है,लेकिन हां ज्ञान जो भी हो प्राप्त करना अत्यंत जटिल है। अगर ज्ञान प्राप्त करना आसान होता तो कोई राजकुमार गौतम बुद्ध क्यों बनते ? या कोई ऋषि वनवासी जैसे जीवन क्यों व्यतीत करते?
इन प्रश्नों का उत्तर खोजना आवश्यक है!!
वास्तविक में ज्ञान यथार्थ अनुभूति है, चाहे दशा और दिशा जो भी हो।
उदाहरण के लिए
एक दाहक वस्तु को छूने से हमारा हाथ जल जाएगा (यह ज्ञान है)
इसके विपरित अगर हम दाहक वस्तु को छूते हैं तो हमारा हाथ जल जाता है,और हमें जलन की अनुभूति है।
इस पीड़ादायक अनुभूति का पूर्वानुमान ही ज्ञान है,और इस ज्ञान के अनुरूप चलने वाले लोग ही ज्ञानी।
अगर किन्हीं को इस बात की अनुभूति हो इसके बावजूद वो यही कार्य करें,तो वो बिलकुल भी ज्ञानी नहीं हैं।
देश के पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक ए पी जे अब्दुल कलाम साहब कहते हैं ,कि ज्ञानी वो जो दूसरे के गलतियों से सीखे।
जीवन को सफल बनाने के लिए आत्मीय रूप से सबल और दृढ़ होना आवश्यक है।
दुखद है कि नई पीढ़ी इस ज्ञान को ज्ञान नहीं मानकर पाखंड मानती है।
कई शिक्षाविद् मानते हैं, कि आत्मीय सबलता के लिए अध्यात्म आवश्यक है,लेकिन पश्चिमी सभ्यता के नकारात्मक प्रभाव से, यह अध्यात्म अब पाखंड कहा जाने लगा है।
अध्यात्म के अनुसार सफलता के बाद,,लेकिन नई पीढ़ी सफलता मिलने के पहले ही अपने प्रसिद्धि के लिए प्रचार प्रसार आरंभ कर देती है,जो समय उन्हें सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाना चाहिए ,,उस समय को वो स्वघोषित निज प्रसिद्धि को प्राप्त करने के प्रयास में नष्ट कर रहे हैं।
ऐसे में मैं सिर्फ़ आवाह्न कर सकता हूं कि अपना पूरा समय प्रचार प्रसार में नष्ट करने से परे होकर ,,सामर्थ्य प्राप्त करने में व्यतीत करें।आपके स्वप्न तभी साकार होंगे।
प्रायोगिक बात यह कि सफलता का स्तर हमेशा ही आपका सामर्थ्य तय करता है।
उदाहरण के लिए एक चार पहिया वाहन का गति अगर डेढ़ सौ किलोमीटर प्रति/घंटा हो तो इस वाहन का निर्माण कार्य सफल होगा सार्थक होगा।
किंतु अगर एक वायुयान का गति तीन सौ किलोमीटर प्रति घंटा भी हो तो इस विमान का निर्माण कार्य असफल और निरर्थक होगा।
इसी प्रकार कई बार आपकी सफलता निरर्थक हो जाती है। और इसका कारण यह भी हो सकता है कि आपके सामर्थ्य का जो स्तर है ,सफ़लता का स्तर अनुरूप नहीं है।
आपको अपने सामर्थ्य के अनुरूप लक्ष्य रखना चाहिए,,अगर परिश्रम करते करते आपका सामर्थ्य बढ़ जाता है ।तब आपको अपने लक्ष्य का स्तर भी बढ़ा देना चाहिए,लेकिन अगर आपके सामर्थ्य का स्तर लक्ष्य के स्तर से नीचे आ रहा है ,तो संकेत यह कि आपके परिश्रम में कमी है।यथार्थ रूप से ज्ञान की अवश्यता यहीं होती है। ज्ञान है सामर्थ्य और लक्ष्य के मध्य नैतिकता!!
आभार।
दीपक झा “रुद्रा”