ज्ञान की बात
गिर भी जाए फलदार पौधा तो
उसको सहारे से उठा दिया जाता है
है ये दस्तूर दुनिया का
सूखे पेड़ों को काट दिया जाता है
है इंसान की फितरत ही ऐसी
किसी का कोई कसूर ही नहीं
ख्याल रखें हम अपनी जड़ों का भी
अब ऐसा कोई दस्तूर ही नहीं
संभल कर रहिए खुद ही
यहां सवारी अपने सामान की खुद ज़िम्मेवार है
खाली हो जाए फलों से लदा वृक्ष
तो कोई और नहीं, वही वृक्ष कसूरवार है
संभलकर चलिए ज़िंदगी की राह पर
न जाने कहां कांटे मिल जाए
गालों को सहलाने के बहाने तुमको
न जाने कहां चांटे मिल जाए
खुद की ज़िंदगी की डोर
अपने हाथ में ही रहे तो अच्छा है
नहीं मालूम कौन यहां पर
कितना झूठा और कितना सच्चा है
है भरी स्वार्थ से ये दुनिया
अच्छा इंसान मिलना तो भाग्य की बात है
मिल जाए कोई तुम्हें कभी तो
उसे जाने न देना, यही ज्ञान की बात है।