ज्ञानदीप
तम की क्या औकात है प्यारे,
अब उसको बतलाना है।
ज्ञानदीप बनकर हर जीवन,
अंधेर धरा से मिटाना है।
माना है बरसात का मौसम,
भर गए गड्ढे गंदे पानी,
अब ज्ञानदीप की बौछारों से,
है साफ करनी मैल पुरानी।
भरी जहाँ है नफरत दिल में,
वहाँ है प्यार का पाठ पढ़ाना।
वैमनस्यता के छाया ऊपर,
अब है ज्ञान का दीप जलाना।
बिछड़ रहे जो साथी हमसे,
उनमें आयी जो धैर्य कमी।
ज्ञानदीप की पौ दिखलाकर,
है धूल हटाना आशा पर जमीं
मानव आज गर खतरे में है,
तो कल भविष्य उज्ज्वल होगा,
लौ चमके बस ज्ञानदीप की,
उजाला जरूर कल होगा।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.
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