जौदत
रोशन के पिता सिराज बहुत साधारण व्यक्ति थे उनकी आमदनी बहुत सीमित थी किसी तरह से मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे सिराज के पांच संताने थी चार बेटे थे इकबाल ,मंसूर ,यूसुफ और इरफान सभी कि उम्र में दो ढाई साल का अंतर ही था रोशन उनकी लाड़ली बेटी थी जो सबसे छोटी थी सिराज पांच वक्त के नमाजी एव इंसानियत पसंद थे सदैव ही उनकी कोशिश रहती लड़का या लड़की किसी जाति समाज सम्प्रदाय धर्म का हो सांस्कारिक हो अपने माँ बाप के आशाओं के अनुरूप आचरण करने वाली समाज राष्ट्र कि जिम्मेदार नाकरिक बने सिराज अपने जमाने के मैट्रिक पास थे जिस जमाने मे भारत मे साक्षरता बहुत कम थी अधिकतर जनसंख्या ने विद्यालय का मुंह तक नही देखा था उस जमाने मे मैट्रिक पास शिक्षा कि बड़ी योग्यता थी सिराज ने गांव के पास से गुजरने वाली सड़क पर बने पुल के नीचे चलता फिरता स्कूल रविवार को चलाते जहां प्रत्येक रविवार को सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक क्लास चलाते जिसमे वह आने वाले बच्चों को नैतिक शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा बच्चों को देते उनके चलते फिरते विद्यालय में अमूमन मजदूरों एव वो बच्चे ही आते जिसे सिराज समझा बुझा कर लाते या माता पिता कि अनुमति लेकर बुलाते सिराज के चलते फिरते स्कूल को लेकर गांव वाले अक्सर मज़ाक उड़ाते और कहते मियां सिराज भविष्य में पल के नीचे के ही नीचे विश्वविद्यालय कि स्थापना करने वाले है कभी कभार कुछ शरारती तत्वों द्वारा पुलिस से शिकायत कर पुल के निचे उनके द्वारा चलाये जा रहे साप्ताहिक चलते फिरते स्कूल को ही बंद करवाने की फिराक में रहते लेकिन किसी तरह से सिराज पुलिस अधिकारियों से निवेदन कर अपना चलता फिरता स्कूल चला ही लेते पुलिस को भी लगता कि यह व्यक्ति बेवजह ही अपना समय बर्वाद कर रहा है किसी से कुछ नही लेता किसी का कुछ नुकसान नही करता सिर्फ शिक्षा के प्रसार प्रचार के लिए एक असंभव अनुष्ठान कर रहा है अतः पुलिस सिराज की बात को मान चलते फिरते स्कूल को गांव वालो के विरोध के वावजूद चलने देते।
सिराज के चलते फिरते स्कूल में एक विद्यार्थी कबाड़ी था जिसके माता कि मृत्यु जन्म लेते ही हो गयी थी और पिता जो ठेला लगाता एक दिन जब वह ठेला लेकर निकल ही रहा था कि उसे पीछे से आते ट्रक ने असंतुलित होकर टक्कर मार दिया और उसकी घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गयी किसी तरह से तीन वर्ष कि उम्र में गिरधारी चाय वाला जो कबाड़ी के पिता सज्जन के मित्र थे अपने पास ले आये और उसका पालन पोषण किया जब वह पांच साल का हुआ तब चाय कि दुकान पर ही रहने लगा और गिरधारी कि चाय की दुकान पर थोड़ा बहुत हाथ बाटाता लेकिन किस्मत को यह भी मंजूर नही था एक दिन गिरधारी की लुगाई गौरी ने कबाड़ी को किसी काम के लिए भेजा कबाड़ी को लौटने में देर हो गयी कारण रास्ते मे कुछ करतब दिखाने वाले करतब दिखा रहे थे वही रुक गया बाल मन जब वह गिरधारी की चाय कि दुकान पर पहुंचा तब गिरधारी कि लुगाई गौरा बहुत तेज नाराज हो गयी और उसने चाय कि भट्टी कि राख कबाड़ी पर फेंक दिया जिससे वह बुरी तरह जल गया रविवार का ही दिन था जब यह बात सिराज को पता लगी वह कबाड़ी को घर ले गए और उसका महीनों उपचार किया जिसके बाद कबाड़ी ठीक हो गया लेकिन सिराज का परिवार में एक बेटी चार बेटे बीबी और वह खुद के खाने पीने कि व्यवस्था के लिए बहुत मसक्कत करनी पड़ती वह तो सिराज के दो बड़े बेटे इकबाल और मंसूर दर्जी का काम करते जिससे कुछ आय हो जाती और घर चलता कबाड़ी को जन्म लेते माँ एव तीन वर्ष बाद दुर्घटना में पिता की मृत्यु के कारण गिरधारी लावारिस उठा कर लाये थे अतः उसका नाम कबाड़ी रख दिया कबाड़ी को अपने नाम से ही रोजी का साधन मिल गया वह दिन भर कूड़े से कबाड़ बिनता और बेचता के जिससे उसे जीवन यापन भर के पैसे मिल जाते और वह गांव के बाहर बने पुल के नीचे सो जाता और प्रत्येक रविवार को सिराज के स्कूल में दिन भर पढ़ता सिराज को कबाड़ी कि मेहनत ईमानदारी पर पूरा भोरोसा था कबाड़ी भी बहुत कम दिनों में ही जोड़ घटाना पहाड़ा गिनती सवैया अढैया आदि गणतिय जानकारियां हासिल कर लिया धीरे धीरे पढ़ते हुए उसे दो वर्ष हो चुके थे सिराज ने उसे एक नया नाम दिया कृष्णा और कक्षा पांच कि परीक्षा दिलाई जिसमे वह अव्वल दर्जे से पास हो गया फिर कक्षा आठ कि परीक्षा कृष्णा अब्बल दर्जे से पास हो गया इस बीच कृष्ण सिराज के घर आता जाता रहता सिराज घर मे उसकी अनुपस्थिति में बहुत तारीफ करते रहते सिराज के इकबाल मंसूर यूसुफ और इरफान से अच्छी खासी दोस्ती हो गयी और कृष्णा घरेलू सदस्य कि तरह हो गया धीरे धीरे कृष्णा ने दसवीं कि परीक्षा भी सिराज के सहयोग से उत्तीर्ण कर लिया।एका एक एक दिन सिराज के घर से उसकी बेटी रोशन लापता हो गयी बहुत खोज बिन करने के बाद उसका कही पता नही चला इधर कृष्णा भी नही दिख रहा था ।लोगो को यकीन हो गया कि रोशन को हो न हो कृष्णा ही लेकर रफू चक्कर हो गया है जो भी सिराज को देखता अजीब नजरो से देखता और मजाकियां लहजे से कहता मास्टर साहब तो बच्चों को नेकी की राह दिखाते मगर क्या कहा जाय# चिराग तले ही अंधेरा # कृष्णा ने साबित कर दिया उसने सिराज कि शिक्षा नेकी का क्या सिला दिया सिराज मास्टर शर्म से सर झुका लेते और कर ही क्या कर सकते थे सिर्फ इतना ही कहते सही है# चिराग तले अंधेरा# साबित किया कृष्णा ने लेकिन चिराग दुनिया को रौशन जरूर करता है ।उधर रोशन और कृष्णा कोलफील्ड पहुँच गए और डॉ तौफीक से सैरी सच्चाई बताई डॉ तौक़िफ़ ने रौशन और कृष्णा को अपने क्लिनिक पर काम पर रख लिया रोशन और कृष्णा ने बड़ी ईमानदारी से डॉ तौक़िफ़ कि क्लिनिक का काम करते और पढ़ते भी रौशन ने बायकायदा नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त किया और कृष्णा ने एम ए एव कुछ मेडिकल प्रक्षिक्षण के कोर्स पूरा किया और वही डॉ तौक़िफ़ कि अनुमति से अपना क्लिनिक खोल लिया दोनों कि मेहनत से बहुत जल्दी ही दोनों इलाके के बड़े डॉक्टरों में शुमार हो गए और पैसे रुपये ऐसे आने लगे जैसे लक्ष्मी स्वंय आ गयी हो दोनों के पास पैसा सम्मान था नही था तो सिराज के नेकी की दुआ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।