जो हुए हादसे देखता रह गया
जो हुए हादसे देखता रह गया
क्या बनाया था किरदार क्या रह गया
अक्स पत्थर में देखा लगा यूँ मुझे
सामने इक मेरे आइना रह गया
उसने पढ़कर सुनाई ग़ज़ब की ग़ज़ल
और मैं था कि बस झूमता रह गया
हम उधर को गए वो इधर आ गये
उनसे मिलना-मिलाना मेरा रह गया
कुछ क़दम मैं चला लौट आया तभी
पर बुलाता मुझे रास्ता रह गया
बीच दरिया में तूफ़ान को देखकर
हौसला भी मेरा कांपता रह गया
आजकल की अदालत न आदिल सही
देर लगती बहुत फ़ैसला रह गया
है उजाला तो ऊपर दिये के बहुत
पर तले में अंधेरा घना रह गया
ढूंढ़ता वो नहीं है किसी में कमी
कौन ‘आनन्द’ जैसा भला रह गया
शब्दार्थ:- आदिल=जज
– डॉ आनन्द किशोर