जो हमने पूछा कि…
ग़ज़ल
जो हमने पूछा कि हम पर यक़ीं नहीं रखते
तो हँस के कहने लगे हां! नहीं नहीं रखते
वो जिसको शौक़ है ख़ाना-बदोशी का उसको
हम अपने दिल में तो हरगिज़ मकीं नहीं रखते
जहाँ सपोले पलें और कलाई डसने लगें
कुशादा इतनी भी हम आस्तीं नहीं रखते
जहाँ पे झुकता है दिल सर वहीं पे झुकता है
हर एक दर पे तो हम ख़म जबीं नहीं रखते
जो दिल में है वो हमारी ज़ुबाँ पे होता है
लबों पे झूठ की हम अंग्बीं नहीं रखते
‘अनीस’ उनका फिसलना तो एक दिन तय है
जो अपने पाँव के नीचे ज़मीं नहीं रखते
– अनीस शाह अनीस
अंग्बीं=शहद