जो हथियारों से सजते
—————————————————
जो हथियारों से सजते वे क्रूर और हत्यारे हैं।
कहते खुद को बाहुबली पर,वे खुद से हारे हैं।
सत्ता-लोलुपता उसके रोम-रोम में भरा हुआ।
दम भरते मानव का,दानव अंदर खड़ा हुआ।
जीवन नष्ट किया कितनों को एवं कैसे मारे हैं!
जो हथियारों से सजते वे क्रूर और हत्यारे हैं।
शोषण करना भी अभिजात्य रूप से हत्या है।
कहिए न विकार इसे यह मानसिक वात्या है।(वात्या=चक्रवात)
जो लोग कुविचारों से आकंठ विभूषित होते हैं।
अपनी नजरों में भी खुद का सम्मान डूबोते हैं।
वे अधम प्रकृति,प्रवृति के नराधम लोग हैं।
वे रक्त की मदिरा पीने,पिलानेवाले लोग हैं।
सत्ता तलवार की भांति तेज और पैनी है।
सत्ता से करना कत्ल,खाना,थूकना खैनी है।
जहर के पानी में अमृत है खोजते चलो।
अमृत पिये तो अहं का विष भोगते चलो।
हत्या नहीं होने तक हर दूसरा हत्यारा है।
हथियारों से सजे लोग किन्तु,दुबारा है।
——————————————–